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मोवेवमट्टि - अनन्तवीर्यदेव के शिष्य ने कोयल में जिनप्रतिमा की स्थापना की थी। [जैशिसं, iv. ५६७ ]
मोकलबायगर ने गंगनरेश शिवमार नवकाम के राज्य में, स० ६७० ई० में, एक जिनमंदिर के लिए क्षेत्र दान किये थे। मंदिर के afroorat चन्द्रसेनाचार्य थे। [वैशिसं. iv. २४; प्रमुख.
७४-७५ ]
मोहनदि या ओोधनन्दि, प्राचीन मथुरा संघ के वामिककुल से सम्बद्ध, आचार्य सेन के शि. ले. में उल्लिखित । [ जैशिसं
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मोरंगजेब-- मुगल बादशाह (१६५८-१७०७ ई०) जैन साहित्योल्लेखों में बहुधा मोरंगसाहि या अबरंगसाहि रूप में उल्लिखित । दे. अवरंगसाहि । [ भाइ ५१६-५२९ ]
मोलुक्य रोहगुप्त- दार्शनिक कणार का अपरनाम, स्थानांगसूत्र में उल्लिखित ।
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आचार्य, वारणगण-पेतिगुरु – १२५ ई० के दो . ४७, ४८ ]
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[मे. २२० ]
एक महान आर्यिका और तमिल भाषा की प्रसिद्ध कवियत्री, कुरलकाव्य प्रणेता तिरुवल्लवर की बहिन थी, ल० प्रथम शती ६० । [टांक. ]
माता बौने मूलतः एक जैन राजकुमारी थी, जो बालब्रह्मचारिणी रही और अपनी निःस्वार्थ सेवा, सुमधुर वाणी, नीतिपूर्ण उपदेशों और कवित्व के लिए तमिल भाषियों के लिए स्मरणीय एवं पूजनीय बनी हुई हैं इस आर्यिका माता का समय ल० प्रथम शती ई० है शायद उपरोक्त ओववार से अभिन्न है ।
[ प्रमुख. ७०]
सौन्दसि के रट्टनरेश कार्त्तवीर्य प्रथम का पौत्र महासामंत अंक, जिसने २०४८ ई० में, चालुक्य सोमेश्वर प्र० के समय में एक
ऐतिहासिक व्यक्तिकोश