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नन्दि, आचार्य वीरचन्द्र और त्रिभुवनकीर्ति के नाम भी हैं। [शिसं. v. पृ. ११९]
उदगम्बर श्वे. तपागच्छी साबु, रत्नशेखर सूरि के शिष्य और इनसूरि के दीक्षागुरु, ल० १४७५ ई० । [जैसिभा. १८/१-२, पृ. १६]
महासामंत ने देवगढ़ ( ललितपुर, उ०प्र०) में, १९५४ ई० में जिनालय (वर्तमान न० ७) निर्माण कराया था । [जैशिसं . v.]
पुत्र- पंचमी व्रत उद्यापन के कर्ता । [ दिल्लीबपुरा मंदिर की प्रति ] उदयमसूरि-- १. राजा भाग के गुरु, सोमप्रभसूरि के समकालीन, मिन्नमाल निवासी श्वे० साधु |
उपयपाल---
२. सुकृत कल्लोलिनी, धर्माभ्युदयकाव्य, नेमिनाथचरित्र, आरंभसिद्धि, बीति एवं कर्मस्तव के टिप्पण, और धर्मदासकृत उपदेशमाला की कणिका नाम्नी टीका (१२४२ ई०) के कर्त्ता हवे. विद्वान, मन्त्रोश्वर वस्तुपाल के विद्वन्मंडल के सदस्य । [गुच. ३०९; केच्व. २१८]
[कैच. १७९]
३. विजयसेन के शिष्य और स्याद्वादमंजरी (१२९२ ई०) के कर्ता मल्लिषेण के गुरु । संभवतया न० २ से अभिन्न है । वस्तुपाल - तेजपाल के गुरु । ४. श्रीमान के राजा विजयन्त तथा ६२ सेठों को जैनधर्म मे दीक्षित करने वाले आचार्य । [ कैच. १००] उदयमरि-प्रवे०, बृहद्गच्छीय साधु ल० ७१८ ई० ।
उपयमाण
उदयभूषण-
उदयमतो----
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सिरोही के राजा अखेराज का जैनधर्म पोषक युवराज, १६४१ ई० । १६६१ ई० में उसने आदिनाथ बिम्बपतिष्ठा कराई थी । [ प्रमुख २९४; कैच. ३७]
या उद्यद्भूषण, गोविन्दभट्ट के पुत्र और नाट्यकार हस्तिमल्ल (१३वीं शती ई०) के भाई, विद्वान श्रावक । अय्यपार्य द्वारा जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय को प्रशस्ति में उल्लिखित । [ प्रवी. i. ८९ ]
गिरनार के नरवाहन खेंगार की पुत्री और गुजरात के भोम प्र०
ऐतिहासिक व्यक्तिकोश