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सोलंकी की पट्टरानी, कर्णसोलंकी की बननी -११वीं शती ई.।
[भुष. २४१, २४८, ११९] गबनाताव तलवार-दावन्कोर नरेश, जिसने १५२१६० में, नागर
कोयिल के जिनमंदिर के लिए कमलवाहन पंडित और गुणबीर पंरित' नामक दिग. जैन गुरुयों को भूमिदान दिवा पा।
देसाई. ७०] उत्यरत्न करि- पञ्चषटहरास का रचयिता। [कंच.१.०] सयराम- लम्बकंचुकान्वयी के भाई सङ्गसेन ने म. राजेन्द्रभूषण के उपदेश
से १८६८६० में सोनागिर में जिनालय निर्माण कराया था। [शिसं. V. ३.१] दूबकुण्ड (ग्वालियर प्रदेश) के १०८८६. के शिलालेख (वान
शासन) का रचयिता। [शिसं. ii. २२८] उदयरामजती- बीकानेर नरेश रायसिंह का आश्रित बनकवि, जिसने १६०॥
ई. में 'राजनीति के दोहे' नामक पुस्तक लिखी थी। [काहि. १३२] खरतरगच्छी, गच्छी उदयराज जो वैद्यविरहिणी प्रबन्ध
(५०० दोहे) के कर्ता हैं, संभवतया यही हैं। उबविणमणि- ने १५९७ ६. में सं. पार्श्वनाथ चरित्र की रचना की थी।
[कास. १४९] उबविद्यापर- अपरनाम लोकविद्याधर या विद्यापर, राजा धोर का पुत्र
और गंगनरेश रक्कसगंग का मानना एवं पोष्यपुत्र, तथा बीरागना सावियब्वे का शूरवीर पति । वीरमार्तण्ड चामुण्डराय (ल० ९५०-९९० ई.) की ओर से एक युद्ध में लड़ते हुए इन
दोनों पति-पत्नि ने बीरगति पाई थी। [प्रमुख. ८४-८५] उज्यमी- चन्द्रवाड के प्रसिद्ध जैन राज्यमन्त्री कासाघर (१३९७ ६.) की
अत्यन्त दानशीला धर्मात्मा भार्या। {प्रमुख. २४९] उदयसागर- पवे., ल० १५५० ई०, उत्तराध्ययनदीपिका के कर्ता । उबसिग- श्रवणबेलगोल के एक यात्रा लेख में उल्लिखित उत्तरापथ का
एक यात्री। [क्षिसं.i.३४८] उपसिह- १. नाडोल का बिनधर्मी पाहमान नरेश, समरसिंह का उत्तरा
धिकारी, ल. १२०० ई.. [कंच: २२]
ऐतिहासिक व्यक्तिको