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आनन्दराज सुराना-- जन्म १५ सित० १८९९ ई०, जोधपुर में, स्वर्गवास २४ सिसक १९८० ई० दिल्ली में, सेठचांदमल सुराना के सुपुत्र 'प्राणीमित्र', 'पद्मश्री' आदि मानद उपाधिप्राप्त, तपे हुए स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, कई बार जेल यात्रा को दिल्ली राज्य की विधानसभा के कई वर्ष सदस्य रहे, सर्वाधिक उत्साह प्राणीरक्षा, जीवदया प्रचार और पशु-पक्षियों के संरक्षण में रहा, अतएव तदुद्देशीय अनेक स्थानीय, प्रान्तीय, अखिल भारतीय तथा अन्तर्राष्ट्रिय सस्थाओं एवं सगठनों से सक्रिय रूप में सम्बद्ध रहे । अन्य कई सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से भी सम्बद्ध | साथ ही सफल व्यापारी भी । [ प्रोग्रे. १०३-१०५ ] १. दिल्ली निवासी दिग. मित्तलगोत्री अग्रवाल, जिनके भाई बखनावरमल ने रतनलाल के सहयोग से १८७७ ई० मे जिनदत चरित्र (हिन्दी पद्य ) की रचना की थी । 1 [टक. ] २. दिल्ली निवासी श्वे. फोफलिया श्रीमाल, जयपुर राज्य में उच्च पदाधिकारी रहे— उनके पुत्र चुन्नीलाल, हीरालाल एव मोहनलाल थे। [टंक. ]
३. बसवा निवासी दिग, श्रावक, पं० दौलतराम कासलीवाल (१७३८-७२ ई०) के पिता । [ प्रमुख. ३१८ ] आनन्दवर्द्धन श्वे. साधु ल० १७५० ई०, कल्याणमदिरपद, भक्तामरपद आदि (हिन्दी) के रचयिता ।
आनन्दविजय - दवे. साधु, ल० १६५० ई०, हर्षकुलकृत त्रिभंगीसूत्र की वृत्ति के रचयिता ।
आनम्वराम
आनन्दविमलसूरि श्वे. तपागच्छी आचार्य (१४९०-१५३९ ई०), सुधारवादी संत, सौराष्ट्र, मालवा, मारवाड आदि प्रदेशों में ग्रामीण जनता के मध्य धर्मप्रचार को विशेषरूप से प्रोत्साहन दिया । इनका Her are aafne प्रभावशानी था और इनके धर्मप्रचार कार्य में सहयोगी था। [ टंक. ]
आनन्दसूरि-- हेमचन्द्राचार्य के एक सुयोग्य शिष्य और उनकी प्रवृत्तियों मे सहयोगी, चालुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज (१०९४ - ११४३ ई०) ने उन्हें 'व्याघ्रथिशुक' उपाधि से सम्मानित किया था । [प्रमुख. २३१-२३२]
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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