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दिग. त्यागी मराठी साहित्यकार, १९२७-२८ ई० में जैनधर्माचे अहिसातव, वैराग्यशतक (अनुवाद), बात्मोन्नतियां सरल उपाय, अन्यधर्मापेक्षा जैन धर्मातील विशेषता, आदि लगभग एक दर्जन पुस्तकें लिखकर प्रकाशित कराई थी।
आनन्द कवि श्वे. तपागच्छी हेमविमलसूरि के प्रशिष्य और कमलसाघु के शिष्य ने १५९३ ई० में राजस्थानी भाषा मे 'चौबीस तीर्थंकरों का गीत' रचा था ।
ऋष
अनन्यधन श्रेष्ठ अध्यात्मिक सत एवं कवि, श्वे. ल० १६२५-७५ ई०, आनन्दधन चौबीसी, आनन्दघन बहत्तरी, स्तवनावली, आदि ब्रजभाषा, राजस्थानी एवं गुजराती भाषा की कई पद्य रचनाओं के प्रणेता, इनके पद पर्याप्त लोकप्रिय, आध्यात्मिक रस से ओतप्रोत और असाम्प्रदायिक है । यह संभवतया मेड़ता के निवासी थे । इस नाम के कतिपय अन्य जैनकवि भी हुए लगते है । जन्म १६०३ ई० में और स्वर्गवास १६७३ ई० में हुआ बताया जाता है। [ कास. २३९-४० ]
जगनसेठ फतहचन्द ( १७२४ ई०) का ज्येष्ठ पुत्र, दयाचन्द एवं महाचन्द का अग्रज, पिता के जीवन में हो निधन हो गयाउसका एकमात्र पुत्र महताबचन्द बाद में मुर्शिदाबाद का द्वितीय जगतसेठ हुआ । [टक. ]
मानन्दजी कल्याणजी -- श्वे. समाज की सर्वप्रसिद्ध तीर्थ संरक्षक पेढ़ी का कल्पित नाम, केन्द्रीय कार्यालय अहमदाबाद में है । [टक. ] आनन्ददेव--- ने १७३७ ई० में मूलनन्दिसंघ के भ. दत्तकीर्ति तथा महेन्द्रकीर्ति
आनन्दचन्य
के साथ जयपुर नरेश अभयसिंह और मेड़ता के राजा बखतसिंह के समय में मारोठनगर में वृहत् जिनबिन प्रतिष्ठा कराई थी। आनन्दनगत — आर्दकुमार चौपदी के कर्त्ता
आनन्दमय्य- होयसल नरेश बल्लाल द्वि (११७३-१२२० ई०) का आश्रित, कन्नड जैन कवि, मदनविजय नामक काव्य का रचयिता । [ प्रमुख. १५७ ]
आनम्बमेद - रायमल्लाभ्युदय काव्य ( १५५६ ई०) के कर्ता पद्मसुन्दर के दादागुरु और पद्ममेरु के गुरु श्वे. आचार्य । [टक. ]
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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