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है । अठारहवीं शती के कवि भगवानदास कृत 'श्री तत्वार्थ सूत्र पूना' नामक काव्य में सप्ततत्वों की चर्चा हुई है ।"
विवेष्य पूजा काव्य में पंचपरमेष्ठी भक्ति का महत्वपूर्ण स्थान है । इनके विषय में भक्ति - सन्दर्भ में चर्चा हुई है। यहां साधु-परमेष्ठी के चारित्रिक गुणों में अट्ठाइस मूल गुणों का अध्ययन करना अभीप्सित है। बीसवीं शती में रचित पूजा काव्य में अट्ठाइस मूल गुणों का उल्लेख हुआ है। पूजा-काव्य में व्यंजित इस ज्ञान-सम्पदा के विषय में विचार करना असंगत न होगा ।
जो दर्शन और ज्ञान से पूर्ण मोक्ष के मार्गभूत सदा शुद्ध चारित्र को प्रकट रूप से साधते हैं वे वस्तुतः मुनि साधु-परमेष्ठी हैं, उन्हें नमस्कार किया गया है ।"
मुनि साधु परमेष्ठी के चारित्रिक गुणों में अट्ठाइस मूल गुणों का उल्लेखनीय स्थान है | अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच महाव्रत, ईर्ष्या, भाषा, एबना, आवना निक्ष पण और उत्सर्ग ये पांच समितियाँ; स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु, धोत्र, इन पंच इन्द्रिय-निग्रहः सामायिक, स्तवन बन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग ये षट् आवश्यक; पृथ्वी शयन, स्नान न करना, दिगम्बर रहना, केश लोच करना, खड़े होकर भोजन करना,
१. ताको वरनत सुर थकाय, सो मोपे किमबरनो सुजाय । तहाँ सप्त तत्व परकाश सार, इकलाख पूर्व कीनो बिहार ॥
-श्री ऋषभनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, वीर पुस्तक भण्डार, मनिहारों का रास्ता, जयपुर, सं० २०१८ पृष्ठ १४ ।
२ षट् द्रव्य को जानें कहयो जिनराज वाक्य प्रमाण सो । किय तत्व सातों का कथन जिन आप्त-आगम मानसो || तत्वार्थ सूत्रहि शास्त्र सो पूजो भविक मन धारि के । लहि ज्ञान तत्व विचार भवि शिव जा भवोदधि पार के ||
- श्री तत्वार्थ सूत्र पूजा, भगवानदास, ६२, नलिनी रोड, कलकत्ता -- ७ पृष्ठ ४१० ।
३. दसण णाण समग्गं मग्ग मोक्खस्स जो ह चारित ।
साधयदि णिच्च सुद्ध साहू स मुणी णमो तस्स ॥
- बृहद्रव्यसंग्रहः, श्री नेमीचन्द्राचार्य, तृतीय अध्याय, गाथा संख्या ५४, श्री रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला, अगास, तृतीय संस्करण, सन् १६६६, पृष्ठ २०० ।