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प्रणति प्रतिमा
प्रतिष्ठा
प्रस्तावना प्रथमानुयोग
प्राविहार्य
प्रार्थना
प्रासुक
नमस्कार, प्रणाम । मूर्ति, बिम्ब, विग्रह। प्रोक्षण, वेदी पर अहत्प्रतिमा को विधिपूर्वक विराजमान करना। अभिषेक की प्रक्रिया का सूत्रपात प्रथमानुयोग आगम का एक प्रकार है इसमें संसार की विचित्रता, पाप-पुण्य का फल, महन्त पुरुषों की प्रवृत्ति इत्यादि निरूपण कर जीवों को धर्म में लगाया जाता है। प्रातिहार्य अर्हन्त के महिमामयी चिन्ह विशेष हैं, ये आठ प्रकार से वर्णित है-अशोक वृक्ष, सिंहासन, तीनछत्र, भामण्डल, दिव्यध्वनि, पुष्पवृष्टि, चौसठ चमर ढरना, दुन्दुभि बाजे बजना । विनयपूर्वक स्वपक्ष-कथन, यानी अपनी बात कहना, भक्ति । निर्जन्तुक, जिसमें से एकेन्द्रिय जीव निकल गये हैं, वे जल , वनस्पति, मार्ग आदि । प्रतिमा, मूर्ति, विग्रह; यथा-जिन बिम्ब । उपादान कारण, मूलवर्ती कारण । निर्मलशान-स्वरूप आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य है। जिनालय, देवालय, देरासर, चैत्यालय । मनन करके जो ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे मतिज्ञान कहते हैं। मतिमान, अतिज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यय, केवलज्ञान में से एक ज्ञान मन: पर्यय है जो कर्म के क्षयोपशम होने पर ही प्रकट होता है। पूजा, इसके अन्य पर्याय शब्द हैं-याग, यज्ञ, ऋतु, सपर्या, इज्या, मख, अध्वर ।। बड़ी पूजा; यथा इन्द्रध्वजपूजा । अन्तिम बड़ा मर्य, इसे सम्पूर्ण पूजा के अन्त में चढ़ाते हैं।
बिम्ब बीज
ब्रह्मचर्य
मन्दिर मतिज्ञान
मनःपर्यय
महामह महामर्य