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ना हुई है जिसमें धर्म, ज्ञान तथा मनस्यात्मक सत्य का अतिशय उद्घाटन हुआ है, वहीं दूसरी ओर काव्यरूप अलंकार, छंद, रस, प्रतीक-योजना, भाषा तथा शैली विषयक साहित्यिक तत्वों की भी सशक्त अभिव्यक्ति हुई है । शैली ताविक दृष्टि से पूजाकाव्य रूप का अपना निजी महत्व है। माह्वान, स्थापना, सनिधिकरम, पूजन-अष्टाव्य द्वारा अष्टकमों के क्षयार्थ शुभसंकल्पपूर्वक अघर्यक्षेपण, पंच कल्याणक, जयमाला तथा विसर्जन जैन पूजाकाव्य के शैली विषयक उल्लेखनीय अंग हैं ।