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( ३५३ ) मशः श्री वासुपूज्य'मिपूजा' तथाश्री चन्द्रप्रभाजनपूजा' नामक मान्यों में यह पसुतीर्थकर पगचिह्न के लिए तथा बोझ-वाहक के लिए प्रयुक्त है।
मुंग-यह बनवारी पशु है। भृगविहीन और गधी के रूप में यह की भागों में विभक्त किया गया है। इसकी आँखें सुग्घर होती हैं। इसकी त्वचा से बैठने का असिन बनता है।
हिन्दी वाडमय में इसका प्रयोग निम्न रूपों में हमा.है, यथा-- १. प्रकृति वर्णन के लिए २. आलंकारिक प्रयोग के लिए मुख्यतः नयन के उपमान के लिए ३. वस्तुवर्णन के लिए-मगतृष्णा, मृगभव, ममछाला माथि ४. विरहिणी को दशा को उद्दीप्त करने के लिए ५. तीयंकर चिन्ह रूप में ६. पूर्वभव के रूप में ७. सहज स्वभाव के रूप में ८. दोनता के लिए
जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में बीसवीं शती के उत्कृष्ट पूजाकार युगल किशोर जैन 'युगल' रचित 'श्री देवशास्त्र गुरुपूजा' नामक पूजारचना के जयमाला प्रसंग में मग का व्यवहार तृष्णा उपमान के लिए किया है।'
इस शती के अन्य पूजाकवि सेवक द्वारा प्रणीत 'श्री आविनाय जिमपुजा' नाम पूजाकृति में हिरण संज्ञा के साथ यह पशु दीनता प्रदर्शन के लिए
१. महिष-चिह्न पद लसे मनोहर,
लाल बरन-तन समता-वाय। --श्री वासुपूज्य जिनपूजा, वृन्दावन, ज्ञानपीठ पूजालि, पृष्ठ ३४१ । कोउ पुण्य बसाय, बाल तपते सुरधायो। हस्ती घोटक बैल, महिष असवारी धायो ।
-श्रीचन्द्रप्रभु पूजा, रामचन्द्र, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ ६५ ३. मृग सम मृगतृष्णा के पीछे, मुझको न मिली सुख की रेखा ।
श्रीदेवशास्त्रगुरु पूजा, युगल किशोर 'युगल'- जैन पूजापाठ संग्रह पृष्ठ ३० । ४. हिरणा बकरा बाछड़ा पशुवीन गरीब असाप' हो।
प्रभु में ऊंट बलद भैसा भयो, ज्यां पे लेदियो भारपार हो। -श्री आदिनाथ जिन पूजा, सेवक जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ