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________________ करा-बहीन परमुलापेकी पर है। जैन-हन्दीमामान्य में रा का प्रयोग बीसवीं शतो के पूजाकार सेवक प्रणीत 'मी बादिना बियूबा' नम्मा पूजाकाम्य में बीनता के लिए हुमा है। यह बनाके कम में गल्लिखित है।' बछड़ा-'गो-वत्स' वस्तुतः 'ना' कहलाता है। हिन्दी काव्य में इसका भयोष निम्न अभिप्राय में उपलब्ध है (२) उबकारने के लिए स्वप्न संदर्भ में (२) लता के लिए (३) कथा प्रसंग में (४) भार होने के अर्थ में (५) प्रतीकात्मक अर्ष में (६) प्रकृति वर्णन के रूप में। जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में बीसवीं शती के पूजा कवयिता सेवक विरचित 'भो आदिनाथजिनपूजा' नामक पूजा रचना में 'बछडा पस' मनाथ पस के स्प में प्रयुक्त है। मेल-यह कृषि प्रधान भारतदेश का उपयोगी पशु है। इसी के बलबूते पर भारतीय कृषि-कर्म निर्भर करता है। पूजाकाव्य में यह बोमा मादने के उहश्य से प्रयुक्त है। उन्नीसवीं शती के रामचन्द्र प्रणीत 'धी चखना पका' नामक कृति में बैल का इसी रूप में प्रयोग परिलक्षित है।। . . महिष-बोम-वाहन के रूप में यह पशु अपना महत्व पूर्ण स्थान रखता है। जन-हिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के पूजा कपिलवन विचित १. हिरणा बकरा बाछड़ा, पशुदीन गरीब अनाथ हो। प्रभु में ऊँट बलद भंसा भयो, ज्या पे लदियो भार अपार हो । ~श्री आदिनाजिनपूजा, सेवक, जनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १८ । २. श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक, पन पूजापाठ संग्रह, पुष १८ ३. कोज पुण्ण बसाय, बाल तपते सुर बायो। हस्ती घोटक बैल, महिष असवारी धायो । -श्री चन्द्रप्रभूपूजा, रामचन्द्र, राजेश नित्यपूजापाठ -पृष्ठ २५ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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