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विरचित 'श्री दोश्वरद्वीप पूजा' नामक पूजाकृति में ढोल वाय उल्लिखित है।"
ताल - संगीत में नियम मात्राओं पर हाथों से ताली बजाना वस्तुतः ताल कहलाता है । इसका प्रयोग उत्सवों में स्त्री-पुरुष समवेतरूप से करते हैं । ताल वाक्य में इसे सम्मिलित किया जा सकता है ।
जैन- हिन्दी-पूजा - काव्य में उन्नीसवीं शती के कवि कमलनयन प्रणीत 'श्री पंचकल्याणक पूजापाठ' नामक पूजाकाव्य कृति में ताल का शास्त्रीय रूप से प्रयोग हुआ है।"
तूर--तूर या तुरही फूंककर बजाने का एक पतले मुँह का बाजा होता है जो दूसरे सिरे की ओर क्रमशः चौड़ा होता जाता है।
जैन- हिन्दी-पूजा - काव्य में उन्नीसवीं शती के कवि रामचन्द्र' और बीसवीं
राजहीं ।
छाजहीं ॥।
सहस चौरासिया एक दिन ढोल सम गोल ऊपर तले मौन बावन्न प्रतिमा नमो सुखकरं ॥
सुंदरं ।
- श्री नंदीश्वरद्वीपपूजा, यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ
१७३ ।
२. चन्द्रोपक चामर घंटा तोरन घने । झल्लरि ताल कंसाल करन उप सब बने || जिन मंदिर में मंडप शोभा करि सही । दीपक ज्योति प्रकाशक जग मग ह्व रही ॥
१. चार दिशि चार अंजन गिरी
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श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित ।
३. फिर पितु घर लाये जो नचि तूर बजाये जी । लखि जंग नमायें मात पिता लये जो ॥ तन हेम महा छवि जी, पंचास धनू रवि जी ।
लाख तीस कहे कवि आयु भई सबै जी ||
- श्री अनंतनाथ जिनपूजा, रामचन्द्र, राजेशनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ
१०५ ।