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बीसवीं शती के कवि सेवक', बौलतराम' और पूरणमल मे तारो का प्रयोग इसी रूप में किया है।
बाल-कासे या पीतल की बाली की शक्ल का बड़ा बरतन वस्तुतः थाल कहलाता है। पूनाकाव्य में पाली का भी प्रयोग हुआ है। पूजाकाव्य में अठा. रहवीं शती के पूजाकवि दयानतराय ने 'श्री बृहत् सिवक पूजाभाषा' में कंचन चार का प्रयोग किया है।
उन्नीसवीं शती में बावन द्वरा विरचित 'श्री शांतिनाय जिनपूना" और भी पदमप्रमजिन पूजा नामक पूजामों में क्रमशः कंचन-चारी, और कनकपार संज्ञाओं के साथ यह उपकरण व्यवहत है।
बीसवीं मती के पूजाकार नेम विरचित 'श्री अकृत्रिम त्यालय पूजा" में कंचन पाली संज्ञा में, आशाराम प्रणीत' श्री सोनागिरि सिद्धक्षेत्र पूजा में हेमपारन संज्ञा में, सेवक रचित 'श्री आदिनाथ जिनपूजा' में चार संज्ञा १. श्री वादिनाथ जिनपूजा, सेवक, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ६५ । २. श्री पावापुर सिद्धक्षेत्र पूजा, दौलतराम, जैनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १४७ । ३. नित पूजन करत तुम्हार कर मे ले झारी। -श्री चांदनगांव महावीर स्वामी पूजा, पूरणमल, जनपूजापाठ संग्रह,
पृष्ठ १६१ । ४. पुन्नी कंचन थार कटोरा,
पापी के कर प्याला कोरा । -श्री बृहदसिद्धचक्र पूजाभाषा, द्यानतराय, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ
२३६ । ५. श्री शांतिनाथ जिनपूजा, वृदावन, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ
६. कनक थार भरि लाय।
-श्री पदमप्रभु जिनपूजा, वृदावन, राजेशनित्यपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ
७. श्री अकृत्रिम त्यालय पूजा, नेम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २५१ । ८. कनक कटोरी माहि हेम थारन में धर के ।
-श्री सोनागिरि सिद्धक्षेत्र पूजा, आशाराम, जैनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ
१५० । ६. बाल भराऊ क्ष धा नशाऊं।
-श्री आदिनाथ जिनपूजा, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ६६ ।