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कटोरा अंडा के साथ तथा 'श्री सप्तर्षि पूजा' में कटोरा संज्ञा के साथउपकरण का प्रयोग किया है।
करपात्र - कर कहते हैं-हाथ और पात्र को बर्तन, इस प्रकार हाथ ही जिसके पात्र हैं, करपात्र है । 'पाणिपात्रों दिगम्बर: ' के अनुसार विवम्बर चैनमुनिजन कर-पात्र में ही आहार लिया करते हैं। पूजाकाव्य में उन्नीसवीं शती के कवि कमलनयन ने इस पात्र का उल्लेख 'श्री पंचकल्याणक पूजा पाठ' नामक रचना में किया है।"
चमर-- इसे चंदर भी कहते हैं तथा किसी-किसी स्थान पर चामर संज्ञा से भी यह व्यवहृत है। यह जिस ओर से पकड़ा जाता है 'मूठ' लगी होती है तथा दूसरी ओर बाल लगे होते हैं। इसमें लगे बाल प्रायशः श्वेत रंग के ही होते हैं। यह राजा-महाराजा साधु संत या धर्मग्रन्थ के ऊपर लाया जाता है ।
पूजाकाव्य में अमर का प्रयोग उपकरण के रूप में हुआ है । उन्नीसवींशती के पूजा रचयिता वृंदावन मे 'श्री शांतिनाथ जिनपूजा" एवं "श्रीचन्द्रप्रभ जिन पूजा" नामक रचनाओं में चमर का प्रयोग लाने के अभिप्राय से किया है ।
atest शती के कविवर नेम', दोलतराम, जिनेश्वरवास, पूरणमल और मुन्नालाल मे चंवर, बामर और चमर संज्ञाओं के साथ इस उपकरण का परम्परानुमोदित प्रयोग किया है ।
१. श्री सप्तर्षिपूजा, मनरंगलाल, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३६३ ।
२. नीरस भोजन लघु एक बार ।
ठाड़े करपात्र करें आहार ॥
श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित |
३.
सिर चमर अमर ढारत अपार ।
श्री शांतिनाब जिनपूजा, वृन्दावन, राजेशन्नित्यपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ११५ । ४. श्री चन्द्रप्रभ जिनपूजा, वृन्दावन, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३३७ । ५. फुनि चंवर ढरत चौसठ लखाय ।
श्री अत्रिम चैत्यालय पूजा, नेम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २५५ । ६. श्री पावापुर सिद्धक्षत्र पूजा, दौलतराम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १४६ । श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास, जैम पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ११४ । ८. श्री चांदन यांव महावीर स्वामी पूजा, पूरणमल, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १६४ ।
७.
९. श्री खण्डगिरि क्षेत्रपूजा, मुन्नालाल, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ११६ ।