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धूप--देवता के आधापण के लिए या सुगंध के निमिल जलाये गये गुग्गुल आदि का धुंआ हो धूप है । गुग्गुल आदि गंध द्रव्य के पांच मेद हैं
१.
निर्यास
२, चूर्ण
४. काठ ५. कृत्रिम
३. गंध
जैन- हिन्दी- पूजा - काव्य में धूप सुगंध के अर्थ में व्यवहृत है। अठारहवीं शती के कविवर खानतराय ने 'श्री बोस तीर्थकर पूजा' नामक पूजा में धूप का उल्लेख किया है।" उन्नीसवीं शती के कवि बख्तावर ने 'श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा' में धूप का व्यवहार किया है।" बीसवीं शती के पूजाकार कुजिलाल विरचित 'श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा' में धूप व्यवहृत है ।"
श्रृंगार-प्रसाधन के अतिरिक्त अब हम यहाँ मुनि, नृपावि द्वारा व्यवहृत आवश्यक उपकरणों पर चर्चा करेंगे ।
कुंभ - माटी विनिर्मित घड़ा कुंभ कहलाता है। इसका उपयोग जल भरने के लिए होता है । पूजा काव्य में अठारहवीं शती के कवि द्यानतराय विरचित 'श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा' नामक कृति में घड़ा संज्ञा के साथ
१. बृहत् हिन्दी शब्द कोश, सम्पा० कालिकाप्रसाद आदि, ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, तृतीय संस्करण संवत् २०२०, पृष्ठ ६७३ ।
धूप अनुपम खेवतें दुःख जले निरधार ।
- श्री बीस तीर्थकर पूजा, यानतराय, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ३४ ।
धूप गंध लेय के सु अग्नि संग जारिये ।
श्री पार्श्वनाथजिनपूजा, बढतावररत्न, राजेश पृष्ठ ११६ ।
नित्य पूजापाठ संग्रह,
४. धूप संग अग्नि मांहि जार करे क्षार है, क्षार बार है ।
श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, कुं जिलाल, नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह,
पृष्ठ ३७ ।