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हैदराब, भवाहरलाल', मासाराम', होरा, नेम, रखत, रोप, पुगलकिशोर 'युगल चंदन का उल्लेख उक्त माराय के साथ किया है।
पण वर्पणारा स्व-पर विम्ब प्रतिविम्बित हुमा करता है। जैनहिन्दी-पूना-काव्य में अठारहवीं शती के कवि थानतराय विरचित 'श्रीवात सिवयक पूजा भाषा एवं 'श्री रत्नत्रयपूजा" नामक कृतियों में इसी हश्य से वर्पन का प्रयोग किया है।
उन्नीसवीं शती के पूनाकवि ददावन को पूजा रचना 'पोचनप्रभु जिनपूजा' में वर्षग उल्लिखित है।" बीसवीं शती के कुंजीलाल ने 'श्री भगवान महावीर स्वामी पूजा नामक पूजा में वर्पण का व्यवहार साबस्व मूलक अभिव्यंजना के लिए किया है। १. श्री गुरुपूजा, हेमराज, बृहजिनवाणी संग्रह, पृष्ठ ३१० । २. पयसों घसि मलयागिरि चंदन लाइये ।
-श्री सम्मेदाचल पूजा, जवाहरलाल, गृहजिनवाणी संग्रहपृष्ठ ४७०। ३. श्री सोनागिरि सिद्धक्षेत्र पूजा, आशाराम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ
१५०।
४. श्री चतुविशति तीर्थकर समुच्चयपूजा, हीराचंद, नित्यनियम विशेषपूजन
संग्रह पृष्ठ ७२ । ५. श्री कृत्रिम चैत्यालय पूजा, नेम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २५१ । ६. श्री रक्षाबंधन पूजा, रघुसुत, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ३६३ । ७. श्री बाहुबली पूजा, दीपचंद, नित्यनियमविशेषपूजनसंग्रह, पृष्ठ ६३ । ८. श्री देवमास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर 'युगल', जैन पूजापाठ संग्रह,
पृष्ठ २७। ६. पा पद मांहि सर्वपद छाजे,
ज्यों दर्पण प्रतिबिंब विराजें। -श्री बृहद सिवचक्र पूजा भाषा, चानतराय, जन पूजापाठ संग्रह,
पृष्ठ २४ । १०. ये माठ भेद करम उधेवक,
जान वपन देखना।
-श्री रलायपूजा, धानतराय, जन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ७३ । ११. श्री चन्द्रप्रभु जिनपूना, वृंदावन, ज्ञानपीठ पूजांजलि पृष्ठ ३३८ । १२. श्री भगवान महावीर स्वामी पूजा, जिलाल, नित्य नियम विशेष पूजन
संग्रह, पृष्ठ ४५।