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बहुवचन), जैन मुनिन की
( श्री विष्णुकुमार महामुनि पूजा, रसुत )
सुमित ( ि
सूरम ('शूर' का बहुवचन), शूरन में सिरदार,
( श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरवास )
सिद्धन ( 'सिद्ध' का बहुवचन), far fear को,
( श्री खण्डगिरि क्षेत्रपूजा, मुन्नालाल )
सर्वनाम -
पूजा साहित्य में प्रयुक्त सर्वनामों का स्वरूप प्रायः ब्रजभाषा का है किन्तु कतिपय सर्वनाम शब्दों का स्वरूप आधुनिक खड़ी बोली का भी व्यबहुत है, यथा
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अठारहवीं शती
में मैं ( सरब पर्व में बड़ो) (श्री नंदीश्वरद्वीप पूजा, हम-निज, ( एक स्वरूप प्रकाश निज ), ( भी
ध्यानतराव )
सोलहकारण पूजा,
दयानतराब ) तू-ता, (ताकों चंहुगति के दुख नाहीं ), ( भी सोलहकारण पूजा, व्यानतराय ! तुम आप, ( आप तिरें ओरन तिरवावे ), ( श्री सोलहकारण पूजा, दयानतराय ) वह सब ( तीन भेद व्योहार सब ), ( श्री चारित्र पूजा, व्यानतराय) बे-जिन ( इन बिन मुक्त न होय ), ( भी चारित्र पूजा, दयानतराय) बे-इन ( इन बिन मुक्त न होय ), ( श्री चारित्र पूजा, दयानतराय ) उन्नीसवीं शती
में-मो, मेरे ( मो काज सरसी ), ( श्री शीतलनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल ), ( करम मेरे ), ( श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न ) हम-निज ( निज ध्यान बिये लवलीन मये ), ( भी चन्द्रग्रम विन पूजा, बृदावन ) तू ता (सानो मध्य इक कुण्डजान ), ( श्री विfरनार सिद्ध क्षेत्र पूजा, रामचन्द्र ) तुम-बाप (सरसो आप सौं), ( श्री शीतलनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल )