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२०--मन व तम सों शुद्ध कर, अब वरणों जयमाल । ( भी तीस चोबीसी पूजा, रविमल )
जब
१८- मिथ्या जुरी उर्व अब आगे, धर्म मधुर रस मूल न आवे । ( श्री बृहत्सिद्ध वक्र पूजा भाषा, थानतराय)
१६ - हाथ चार जब भूमि निहारें ।
२० जब चौथी काल लगं जु आय ।
( श्री क्षमा वाणी पूजा, मल्लजी)
-
२०
(श्री तीस चोबीस पूजा, रविमल )
सवा
१८ -- खानत सिद्ध नमों सदा, अमल अचल चिडूप ।
(श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजाभाषा, धानसराय)
१६- शान्ति शान्ति गुन-मंडिते सदा, जाहि ध्यावते सुपंडिते सदा । ( श्री शान्तिनाथ जिन्पूजा, वृंदावन)
बाल ब्रह्मचारी जगतारी सदा विराग सरूप । (श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास)
तब
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१६- पंचम अंग उपधान बतार्थ पाठ सहित तब बहु फल पावें । (श्री क्षमावाणी पूजा, मल्लजी)
२० - अतएव मुके तब चरणों में, जग के माणिक मोती सारे । (श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर 'युगल')
१६- जय चन्द्र वंदन राजीव नैन, कबहूँ विकथा बोलत न बैन । ( भी सप्तष पूजा, मनरंगलाल )
२०
- कबहूँ इतर निगोह में मोकू पटकत करत अचेत हो । (श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक )
परिणाम वाचक अव्यय --
बहुत
१६- आवर ते बहु आदर पाये, उदय अनश्वर ते न सुहावे । (श्री बृहत्सद्धचक्र पूजाभाचा, बानसराय )