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बीसवीं शती
कालुष्य
अन्तर का कानुष
निज पान' अनाज
नाज काज जियवान' अव्यय
जन-हिन्दी-पूजा-काव्य की भाषा में निम्नलिखित अव्यय प्रयुक्त है जो वाक्य रचना में विभिन्न रूप से काम आते हैं। अव्ययों को विभिन्न वैयाकरणों ने विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत रखा है। विवेच्य काव्य में प्रयुक्त अव्ययों को निम्नलिखित शीर्षकों में रखा जा सकता है
(१) समयवाचक अव्यय (२) परिमाणवाचक अध्यय (३) स्थानवाचक अव्यय (४) गुणवाचक अध्यय (५) प्रश्नवाचक अध्यय (६) निषेधवाचक अव्यय (७) विस्मयवाचक अध्यय
() सामान्य अध्यय समयवाचक अव्यय
अबशताम्दि कम १५-राम न दोष मोहि नहि मावं, अजर अमर अब अवल सहाय ।
(भी बहत्सित व पूजा भाषा, धानतराय) १६-मान गही शरमागत फो, अब अंपति जी पत राखहु मेरो।
श्री शान्तिनाथ जिन पूजा, वृंदावन) १. श्री देवयास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर' 'युगल', संगहीत ग्रंथ-राजेश नित्य
पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल बस, हरिनार, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ ४८ । २. श्री तीस चौबीसी पूजा, रविमल, सगृहीत प्रथ-जन पूजा पाठ संग्रह, भाग
चन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २४६ । ३. श्री सोनागिरि सिख क्षेत्रपूजा, माशाराम, संगृहीत प्रथ-जनपूजापाठसग्रह,
मागचन्द्र पाटनी, नं०६२, नलिनी सेठरोड, कलकस्ता-७, पृष्ठ १५२ ।