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________________ मात्रिक विषम छंद : कुण्डलिया ("Re') कुण्डलिया मात्रिक विषम छंद है।' इस छंद का मूल उद्यम अपभ्रंश में हुआ और हिन्दी में इसका प्रयोग भक्त्यात्मक तथा वीररसात्मक काय्यामिव्यक्ति में हुआ है। जैन - हिन्दी-पूजा - काव्य में यह छंद बीसवीं शती के कविवर रविमल की 'श्री तीस चौबीसी पूजा' नामक पूजा-रचना में व्यवहृत है ।' जैन - हिन्दी-पूजा - काव्य में कुण्डलिया छद शांतरस के परिपाक में प्रयुक्त है । छप्पय यह षट् चारणों वाला एक मात्रिक विषम छन्द है ।" हिन्दी में बोर, शृंगार और शान्त आदि रसों में छप्पय छंद का व्यवहार हुआ है । जैन - हिन्दी- पूजा काव्य में उन्नीसवीं शती के कविवर वृन्दावन ने इस छंद का प्रयोग अपनी पूजा काव्य कृति 'श्री चन्द्र प्रभु जिनपूजा में किया है ।" १. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा लिमिटेड, बनारस, प्रथम संस्करण, संवत् धीरेन्द्र वर्मा आदि, ज्ञानमण्डल २०१५, पृष्ठ २१६ । २ द्वीप अढ़ाई के विषं पांच मेरु हितदाय । दक्षिण उत्तरतासु के, भरत ऐरावत भाय ॥ भरत ऐरावत भाय, एक क्षेत्र के मांही। चौबीसी है तीन तीन दशहीं के दशो क्षेत्र के तीस, अर्ध लेय कर जोर, मांही ॥ सात सौ बीस जिनेश्वर । जजों 'रविमल' मन शुद्ध कर ॥ - श्री तीस चौबीसी पूजा - रविमल, संगृहीतग्रंथ जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेड रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २४८ । ३. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, ज्ञान- मण्डल लिमिटेड वनारस, प्रथम संस्करण स० २०१५, पृष्ठ २६२ । ४. श्री चन्द्रप्रभु जिनपूजा, बृन्दावन, संगृहीतग्र प० ज्ञानपीठ पूजांजलि, अयोध्याप्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस संस्करण १९५७ ई०, पृष्ठ ३३३ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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