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उल्लेखनीय बात यह है कि जैन कवियों की हिम्बी-पूजा- कव्य कृतियों में प्रद्धरि छंद शांतरस के निरूपण में ही व्यवहृत है। इस दृष्टि से इस छन् का सर्वाधिक प्रयोग १६ वीं शती में परिलक्षित है ।
पादाकुलक
afts समन्व का एक भेव पावाकुलक छन्द है । पादाकुलक को एक छंद विशेष के रूप में अपभ्रंश के सशक्त महाकवि स्वयंभू और प्राकृत-मंगलम् - कार के द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त हुई किन्तु चार चोकल वाले पादाकुलक के चरण की व्यवस्था संभवत: सर्वप्रथम भानु ने सम्पन्न की है ।"
जैन - हिन्दी- पूजा-काव्य में पावाकुलक छंद का व्यवहार बीसवीं शती के afe waaraare रचित 'श्री तत्वार्थ सूत्रपूजा' नामक पूजाकाव्यकृति में शान्तरस के परिपाक के लिए परिलक्षित है।'
चान्द्रायण
erator मात्रिक समछेद का एक मेव है ।
जंन हिन्दी - पूजा काव्य में अठारहवीं शती के कविवर व्यानतराय ने 'श्री सोलहकारण पूजा' नामक पूजा रचना में इस छंद का प्रयोग किया है। *
१. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, प्रकाशकज्ञानमण्डल लिमिटेड, बनारस, संस्क० सवत् २०१५, पृष्ठ ४४८ ।
२. सूर साहित्य का छन्द: शास्त्रीय अध्ययन, डॉ० गौरीशंकर मिश्र 'द्विजेन्द्र', परिमल प्रकाशन, १९४, सोहबतिया बाग, इलाहाबाद-६, अगस्त १९६९ ई०, पृष्ठ६०-६१ ।
३. अति मान सरोवर झील खरा,
करुणा रस पूरित नीर भरा ।
वशधर्म बहे शुभ हंस तग प्रणनामि सूत्र जिनवाणि भरा ||
- श्रीतत्वार्थ सूत्रपूजा, भगवानदास, समृहीतग्रंथ, जैन पूजापाठ संग्रह, प्रकाशक- भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ४१० ।
४. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, ज्ञानमंडल लिमिटेड, बनारस, संस्करण सं० २०१५, पृष्ठ २५७ ।
५. सोलह कारण भाय, तीर्थ कर जे भये ।
हरषे इन्द्र अपार, मेरु पे ले गये ।।
पूजा करि निज धन्य, लख्यो बहु चावसों ।
हमहू षोडश कारन, भावें भाव सों ॥
- श्री सोलह कारण पूजा, दयानतराब, संगृहीतग्रंथ, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९७६, पृष्ठ १७४ ।