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कवियों भूधरदास एवं द्यानतराय दोनों ने पूजा साहित्य को भी अन्य साहित्य के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया। इन दोनों कवियों की पूजाओं ने जब लोकप्रियता प्राप्त की तथा घर-घर में उनका प्रचार हो गया तो १६वीं एवं २०वीं शताब्दियों में तो हिन्दी में इतना अधिक पूजा साहित्य लिखा गया कि उसकी गिनती करना कठिन है । ऐसे पूजा साहित्य निर्माता कवियों में डालूराम, टेकचन्द्र, सेवाराम माह, रामचन्द्र, बख्तावरलाल, नेमिचन्द्र पाटनी के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं । २०वीं शताब्दी में प्रसिद्ध पूजाकवियों में सदासुखजी कासलीवाल, स्वरूपचन्द्र विलाला, पन्नालाल दूनीवाले, मनरंगलाल के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। इन कवियों ने पूजा साहित्य को इतना अधिक लोकप्रिय बनाया कि चारों ओर पूजा साहित्य ही दृष्टिगोचर होने लगा । अढ़ाई द्वीप पूजा, तीन लोक पूजा, समव रणपूजा, चारित्र शुद्धि विधान पूजा, सोलहकारण पूजा, दशलक्षणपूजा, अष्टान्हिका पूजा, पंचमेरु पूजा जैसी महत्वपूर्ण एवं पुराण सम्मत प्रजाओं को छंदोबद्ध करके समाज को एक सूत्र में बाँध दिया और देश के हिन्दी भाषी एवं अहिन्दी भाषी प्रदेशो में समान रूप से उमी तन्मयता के साथ पूजाये की जाने लगीं। हजारों व्यक्तियों को तो पूजा बोलने के लिए हिन्दी भाषा सीखनी पड़ी और आज तक की हिन्दी पूजा की यही परम्परा चल रही है। वर्तमान शताब्दी मे भी पचासों विद्वानों ने विभिन्न प्रकार की पूजाएं निबद्ध की हैं उनमें कुछ पूजायें तो बहुत ही लोकप्रिय बन गई हैं ।
पूजा साहित्य हमारी भावनात्मक एकता का प्रतीक है क्योंकि देश के विभिन्न प्रदेशों में वे समान रूप से पढ़ी एवं बोली जाती हैं। आसाम, बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र में पूजा करने वालों के लिए
ही हिन्दी पूजायें हैं जो राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं देहली मे उपलब्ध हैं । पूजा करने वालों के लिए प्रदेश एवं भाषा का कोई अवरोध नहीं है ।
डॉ० आदित्य प्रefuser ने 'हिन्दी जैन पूजा साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन' प्रस्तुत करके इस दिशा में एक नया एवं खोजपूर्ण कार्य किया है । यह उनका शोधप्रबन्ध है जिस पर सन् १९७८ ई० में उन्हें आगरा विश्वविद्यालय से पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त हुई है । डॉ० आदित्य ने हिन्दी पूजाओं का सम्यक् अध्ययन किया है और उसके उद्भव एवं विकास, ज्ञान,