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मैन बागमय में शास्त्र के कई भेद-प्रमेव किये गये है१. कल्पनास्त्र -विसमें अपराध के अनुरूप बम विधान
कहा गया हो। २. निमित शास्त्र ___- इसमें स्त्री-पुरुष के लक्षणों का वर्णन
किया गया हो। ३. बाध्य शास्त्र
ज्योतिर्मान, छन्दः शास्त्र, अर्थशास्त्र
बाज्य शास्त्र है। ४. लौकिक शास्त्र - व्याकरण गणितादि। ५. वैदिक शास्त्र - सिद्धान्त शास्त्र । ६. सामयिक शास्त्र - स्याद्वाद, न्याय शास्त्र ।
वस्तुतः देव की वाणी को शास्त्र कहते हैं। वह वीतराग है मतः उनकी वाणी भी वीतरागता की पोषक होती है। राग को धर्म बताये वह वीतराग वाणी नहीं है । वीतराग वाणी का आधार है तत्त्व-चितन । उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें कहीं भी तत्व का विरोध परिलक्षित नहीं होता। गुरु (धी गुरु पूजा)
“ग्रहणाति उपविशति सम्यकदर्शन, सम्यक् दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारत्र सः गृह । 'गह' धातु से गुरु शम्य बना है। लोक में गुरु का अर्थ 'बड़ा' है। जैनदर्शन में पंच परमेष्ठियों यथा अर्हन्त, सिर, माचार्य, उपाध्याय १. (अ) स्त्रीपुरुष लक्षणं निमितं, ज्योतिर्ज्ञानं, छन्दः अर्थशास्त्र वैद्यं, लौकिक
वैदिक समयाश्च बाध्य शास्त्राण । -- भगवती आराधना, ६१२८१२।७, जैनेन्द्र सिवान्त कोश,
भाग ४, जिनेन्द्र वर्गी, भारतीय ज्ञानपीठ, २०३०, पृष्ठांक २८ । (ब) व्याकरण गणित लौकिक शास्त्र है सिद्धान्त शास्त्र वैदिक शास्त्र
है, स्याद्वादन्यायशास्त्र व अध्यात्मक सामाजिक शास्त्र है। - मूलाचार भाषा, १४४, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ४, जिनेन्द्र
वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, २०३०, पृष्ठांक २८ । २. आप्तोपत्रमनुल्लध्य, महष्टेष्ट विरोधकम् ।।
तत्वोपदेशकृत-सार्व, शास्त्र कापथ-पट्टनम् ।। -~~ रत्नकरण्डश्रावकाचार, बाबार्य समन्तभद्र, प्रकाशक- माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रंथमाला, हीराबाग, बंबई, वि० सं० १६८२, छंदाक,
पृष्ठ । ३. श्री गुरुपूजा, हेमराज, संग्रहीत प्रप-बहजिनवाणी संग्रह, सम्पा.
प्रकाशक-पं० पलालाल बाकलीवाल, मदनगंज, किशनगढ़, सितम्बर १९५६, पृष्ठ ३०६।