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अपभ्रंश से होता हुआ 'अक्षत' शब्द अपना यही अर्थ समेटे हुए हिन्दी में मी गृहीत है। जैम- हिन्दी-पूजा- काव्य में १८ वीं शती के कवि बाग प्रणीत 'श्री जयचमेव पूजा' नामक कृति में अक्षत शब्द उल्लेखनीय है ।" उन्नीसवीं शती के पूजाकार मनरंगलाल बिरचित 'श्री नेमिनाथ बिनपूर्णा' नामक रचना में अक्षत शब्द का प्रयोग हृष्टव्य है।" बीसवीं शती के पूजाकाव्य के प्रणेता कुंजीलाल विरचित 'श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा' नामक कृति में अक्षत राज्य का व्यवहार इसी अभिप्राय से हुआ है ।"
पुष्प - पुष्यति विकसित इह पुष्पः । पुष्प कामदेव का प्रतीक है । लोक में इसका प्रचुर प्रयोग देखा जाता है। जैन काव्य में पुरुष प्रतीकार्य है । पुष्प समग्र ऐहिक वासनाओं के विसर्जन का प्रतीक है। म
१. अमल अखंड सुगन्ध समुदाय, अच्छत सों पूजों जिनराय । महासुख होय, देखे नाम परम सुख होय ॥
ॐ ह्रीं आदि सुदर्शन मेरु, विजयमेरु, अचलमेर, मंदिरमेरु विद्यमाली मेरुभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री अथ पंचमेरू पूजा, धानतराय, संग्रहीत ग्रन्थसंग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़,
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- राजेश नित्य पूजापाठ
१६७६, पृष्ठ १६८ ।
२. नहि खंड एको सब अखंडित ल्याय अक्षत पावने । दिशि विदिशि जिनकी महक करि महके लगे मन भावने ।
ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री नेमिनाथ जिन पूजा, मनरंगलाल, संग्रहीत ग्रन्थ- ज्ञानपीठ पूजांजलि, प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, सन् १९५७, पृष्ठ ३६६ ।
३. अक्षत अखंडित सुगंधित बनायके, पुंज लायके । अक्षत पद पूजत है मन में हुलसायके हुलसायके ||
ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, कुं जिलाल, संगृहीत ग्रन्थ - नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह प्रकाशिका व सम्पादिका ह० पतासी बाई, नवा (बिहार), भाद्रपद वीर, सं० २४८७, पृष्ठ ३६ ।