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इस प्रकार -हिन्दी-पूजा-काव्य के द्वारा जन भक्ति का प्रतिपादन हुमा है ताम्बिकम से बम्पयन करने पर यह सहन में स्पष्ट हो जाता है कि देव साथ गुरु पूजा-काव्य का प्राणतत्व है। यह तस्व पूजा परम्परा में माहिते मात तक बहता है। इस दृष्टि से विभिन्न मतानियों में माना पूजामों के महा भक्ति के विविध प स्थिर हुए हैं। विवष्य काय द्वारा भक्ति के विविध मों का विकासात्मक संक्षिप्त अध्ययन किया गया है।
पूजाकाव्यधारा में कबिर्मनीषो बानतराय, मनरंगलाल, रामचनो बानपास का स्थान बड़े महत्त्व का है। पूजाकाव्यकारों मे हम्ही कवियों द्वारा स्थापित मावत का अनुकरण किया है।