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इस शताब्दि में रचित 'भी दशलक्षणधर्म पूजा' के द्वारा
की सत्ता को चरितार्थ करता है। धर्म के दस लक्षण धर्म में अकार किए गए हैं' बवा
१---सम क्षमा २-- उत्तम मार्दव -उत्तम आर्जव
४--उत्तम शौच
५--- सत्य - उत्तम संयम
--उस सम
८--उसम त्याग
-उत्तम आकिंचन्य उत्तम ब्रह्मचर्य
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कविवर यानतराय ने इस पूजा के माध्यम से धर्म के इन तत्वों कर चितवन करते हुए भक्ति करने की संस्तुति की है फलस्वरूप चतुर्गतियों में व्याप्य दुःखों से मुक्ति प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।"
इसी क्रम में सोलह कारण पूजा का स्थान बड़े महत्व का है। पूजाकार ने सोलह भावनाओं का जिल्लवन करने से मोक्ष का कारण बताया है
२ - उत्तमः क्षमा मादंवार्जव शौचसत्य संयमतपस्त्यागाकिञ्चन्य ब्रह्मचर्याणि धर्मः ।
-तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय नवम्, श्लोक संख्या ६, उमास्वामी, सम्पादकपं० सुखलाल संघवी, भारत जैन मण्डल वर्धा, प्रयमसंस्करण १९५२ ई०, पृष्ठ ३०३ ।
२ उत्तम क्षिमा मारदेव आरजब भाव हैं । सत्य कोच संयम तप त्याग उपाय है ||
किचन ब्रह्मचरन धरम दशसार हैं ।
गति-दुख तें कामुकति करतार हैं ।।
-श्री वलक्षण धर्म पूजा, धानतराय, ज्ञानपीठ पूजांचमि, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, प्रथम संस्करण १९५७ ई०, पृष्ठ ३०६ ।
३ - दर्शन विशुद्धिविनयसम्पन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णं ज्ञानोपयोग संवेग शक्तितत्यागतप्रसी संघ साधु समाधि वैयावृत्यकरण मद्राचार्य बहुभुतप्रवचनभक्ति रावश्यकापरिहाणिर्मार्ग प्रभावना प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकृत्वस्य ।
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तत्वार्थ सूत्र अध्याय षष्ठ, तेइस श्लोक संख्या, उमास्वामी, जैन संस्कृति संशोधन मण्डल, हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस-५, द्वितीय संस्करण १९५२, पृष्ठ २२६ ।