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(८५) १९२ वीं प्रशस्ति 'षट्दर्शनप्रमाणप्रमेयसंग्रह' नामक ग्रन्थ को हैं। जिमके कर्ता भट्टारक शुभचन्द्र हैं। ये शुभचन्द्र कारगरगण के विद्वान श्रे, जो रावान्तरूपी समुद्र के पारको पहुँचे हुए थे और विद्वानोंके द्वारा अभिवंदनीय थे । भट्टारक शुभचन्द्रने इस ग्रन्थ में प्राचार्य समन्तभद्रकी प्राप्तमीमांमागत प्रमाणके 'तत्त्वज्ञानं प्रमाणं' नामक लक्षणका उल्लेख करते हुए उसके भेद-प्रभेदोंकी चर्चा की है । ग्रन्थमें रचनाकाल दिया हुया नहीं है, ये शुभचन्द्र कर्नाटक प्रदेशके निवासी हैं।
११३ वीं प्रशस्ति 'तत्त्वार्थवृत्तिपद' की है, यह अन्य गृद्धपिच्छाचार्य के तत्त्वार्थ सूत्रपर प्राचार्य प्रवर देवनन्दी अपर नाम (पज्यपाद) के द्वारा रची गई 'तत्वार्थवृत्ति' (मर्वार्थसिद्धि) के अप्रकट (विषय) पदोंका टिप्पण है। जिसके कर्ता आचार्य प्रभाचन्द्र हैं जो पानंदीके शिष्य थे। इनका परिचय १४ वीं प्रशस्तिमें दिया गया है।
११४ वीं प्रशस्ति 'करकण्ड चरित्र' की है। जिसके कर्ता भट्टारक शुभचंद्र हैं। जिनका परिचय ३२वीं प्रशस्तिमें दिया गया है ।।
११५ वीं प्रशस्ति 'शांतिविधि' की है जिसके कर्ता पं० धर्मदेव हैं, जो पौरपाटान्वय (परवारकुल ) में उत्पन्न हुए थे। और वाग्भट्ट नामक श्रावकके पुत्र वरदेव ( नरदेव ) प्रतिष्ठा शास्त्रके जानकार हुए । उनके छोटे भाई श्रीदत्त थे जो मर्व शास्त्र विशारद थे। उनकी मानिनी नामकी धर्मपत्नी थी उससे धर्मदेव नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ था और गोगा नामका दूसरा । प्रस्तुत धर्मदेव ही इस शान्तिकविधिके रचयिता हैं । इनका समय क्या है यह ग्रन्थ-प्रशस्ति परसे कुछ भी ज्ञात नहीं होता। पर विक्रमकी १५वीं, १६वीं शताब्दीसे पूर्वका यह ग्रन्थ नहीं जान पड़ता।
* काणूरगणमें अनेक विद्वान् हो गए हैं। श्रवणबेलगोलके समीपवर्ती सोमवार नामक ग्रामकी पुरानी बस्तिके समीप शक सं० १००१ के उत्कीर्ण किये हुए शिलालेखमें काणूरगणके प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवका उल्लेम्ब निहित है।