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ठित होनेवाले मल्लभूषण गुरुके ये शिष्य थे । मल्लिभूषणके एक शिष्य भ० सिंहनन्दिगुरु थे, जो मालबाकी गडीके भट्टारक थे। इनकी प्रार्थनासे श्रुतसागरने सोमदेवाचार्य 'यशस्तिलक चम्पू' को 'चन्द्रिका' नामकी टीका fear थी और ब्रह्म नेमिदत्तने नेमिनाथपुराण भी मल्लिभूषण के उपदेश से बनाया था और वह उन्हींके नामांकित किया गया था ।
ब्रह्मदत्त अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है किन्तु ये सब रचनाएँ इस समय मेरे सामने नहीं हैं जिनसे यह निश्चय किया जा सके कि उन्होंने atra सी रचना कब और कहाँ निर्माण की । उनकी ज्ञात रचनाओंके नाम इस प्रकार हैं:
१. रात्रिभोजनत्याग कथा, २. सुदर्शनचरित, ३. श्रीपालचरित, ४. धर्मोपदेशपीयूष वर्ष श्रावकाचार, ५. नेमिनाथपुराण ६. आराधनाकथाकोश, ७. प्रीतिंकरमहामुनि चरित और म धन्यकुमारचरित । इनमेंसे इस संग्रहमें चार प्रन्थोकी प्रशस्तियाँ दी गई हैं ।
एच. डी. वेलंकरके 'जिनरत्नकोष' में ब्रह्म नेमिदत्तके 'नेमिनिर्वाण' काव्यका नाम दर्ज है जिसकी अवस्थिति ईडरके शास्त्र भण्डारमें बतलाई गई है ।
इनका समय विक्रमकी १६वीं शताब्दीका अन्तिम चरण है । इनका जन्म सम्भवतः संवत् १५५० या १५५५के आस-पास हुआ जान पडता है । क्योंकि इन्होंने अपना श्राराधना कथाकोश सं० १५७५ के लगभग बनाया था और श्रीपालचरित सं० १५८५ में बनाकर समाप्त किया है। शेष ग्रन्थ उक्त समयोंके मध्यवर्ती समयकी रचनाएँ ज्ञात होती हैं ।
१० वीं, २२ वीं और ४८ वीं और १४३ १६६ तककी २४ प्रशस्तियाँ अर्थात कुल २७ प्रशस्तियां क्रमश: श्रीपाल चरित, यशोधरचरित और ज्ञानार्णवगद्यटीका, ज्येष्ट जिनवरकथा, रविव्रतकथा, सप्तपरमस्थान व्रतकथा, मुकुटसप्तमीकथा, अक्षयनिधिव्रतकथा, षोडशकार कथा, मेघमालात्रतकथा, चन्दनषष्टीकथा, लब्धिविधानकथा, दशलाक्षिणीव्रतकथा, पुष्पाञ्जलित्रतकथा, आकाशपंचमीकथा, मुक्तावलीव्रतकथा, निदु:खसप्तमीकथा, सुगन्ध