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(७) सन् १४७६ के मध्यवर्ती किसी समयमें इस यशोधर चरितकी रचना भ० गुणकीर्तिके उपदेशसे की है।
चौथी प्रशस्ति मुनि वासवसेनके यशोधरचरितकी है । मुनिवासघसेनने अपनी प्रशस्तिमें उसका रचनाकाल और अपना कोई परिचय नहीं दिया और न दूसरे किन्हीं साधनोंसे ही यह ज्ञात हो सका है कि उक्त चरित कब रचा गया । इस ग्रन्थकी एक प्रति सं०१५८१ की लिखी हुई जैनसिद्धान्तभवन श्रारामें मौजूद है, जो रामसेनान्वयी भ० रनकीर्तिके प्रपट्टधर और भ० लखमसेनके पट्टधर भ० धर्मसनके समयमें लिखी गई है, उमसे इतना ही ज्ञात होता है कि वासबसेन सं० १५८१ से पूर्ववर्ती विद्वान हैं, कितने पूर्ववर्ती हैं, यह अभी अज्ञात है।
/ पांचवीं प्रशस्ति 'नेमिनिर्वाणकाव्य' की है जिसके कर्ता कवि वाग्भट हैं । कवि वाग्भट्ट प्राग्वाट ( पोरवाड़) वंशके कुलचन्द्र थे, और अहिछत्रपुरमें उत्पन हुए थे। इनके पिताका नाम छाहरू था। इनकी यह एक ही कृति अभी तक उपलब्ध है, जो १६० पद्योंकी संख्याको लिये हुए है। यह मारा ग्रन्थ १५ सो अथवा अध्यायोंमें विभक्त है। इसमें जैनियों के बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथका चरित्र अंकित किया गया है। ग्रन्धकी रचना सुन्दर, सरस, मधुर तथा विविध अलंकारों श्रादिसे विभूषित है। इसके सातवें सर्गमें 'मालिनी' श्रादि संस्कृतक ४४ छन्दोंका स्वरूप भी दिया हुश्रा है और पद्यक उपान्त्य चरणमें चन्दके नामकी सूचना भी कर दी गई है । ग्रन्थ के अनेक पद्योंका उपयोग वाग्भट्टालंकारक कर्ता वाग्भटने अपने ग्रन्थमें यत्र तत्र किया है। कि वाग्भट्टालंकारक कर्ता कवि वाग्भटका समय विक्रमकी १२ वीं शताब्दीका उत्तराद्ध (सं० ११७३) है अतः यह ग्रन्थ उससे पूर्व ही रचा है । इस काम्य ग्रन्थ पर भ० ज्ञानभूषणकी एक पंजिका टीका भी उपलब्ध है, जो देहलीके पंचायती मन्दिरके शास्त्रभंडार में मौजूद है। प्रन्थकर्ताने अपने सम्प्रदायका कोई उल्लेख नहीं किया, फिर भी १९वें तीर्थकर मल्लिनाथ जिनकी स्तुति करते हुए उन्हें