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ये तीनों ही पत्नियाँ मती, साध्वी तथा गुणवती थीं और नित्य जिनपूजन किया करती थीं; रल्होले कल्याणसिंह नामका एक पुत्र उत्पन्न हुश्रा था, जो बडा ही रूपवान, दानी और जिनगुरुके चरणाराधनमें तत्पर था । इस सर्वगुण सम्पन्न कुशराजने श्रुतभक्तिवश उक्त यशोधरचरित्रकी रचना कराई थी जिसमें राजा यशोधर और रानी चन्द्रमतीका जीवन परिचय दिया हुआ है । यह पौराणिक चरित्र बडा ही रुचिकर प्रिय और treat मृतक श्रोत बहाने वाला है। इस पर अनेक विद्वानों द्वारा प्राकृत, संस्कृत अपभ्रंश और हिन्दी गुजराती भाषा में ग्रन्थ रचे गए हैं।
में
कविवर पद्मनाभने अपना यह ग्रन्थ जिस राजा वीरमदेवके राज्यकाल'रचा है वह ग्वालियरका शासक था और उसका वंश 'तोमर' था । यह वही प्रसिद्ध क्षत्रिय वंश है जिसे दिल्लीको चपाने और उसके पुनरुद्धार करनेका श्रेय प्राप्त है । वीरमदेवके पिता उद्धरणदेव थे, जो राजनीति में दक्ष और सर्वगुण सम्पन्न थे । सन् १४०० या इसके ग्राम पास ही राज्यसता वीरमदेव हाथमें आई थी। हिजरी सन ८०५ और वि० सं० १४६२ में अथवा १४०५ A. D. में मल्लू इकबालखाने ग्वालियर पर चढ़ाई की थी; परन्तु उस समय उसे निराश होकर ही लौटना पड़ा । फिर उसने दूसरी बार भी ग्वालियर पर घेरा डाला; किन्तु इस बार भी उसे आस-पास के कुछ इलाके लूट कर हो वापिस लौटना पडा ।
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श्राचार्य अमृतचन्द्रकी 'तत्त्वदीपिका' (प्रवचनमार टीका ) की लेखक प्रशस्तिमें, जो वि० सं० १४६६ में लिखी गई है, गोपादिमें ( ग्वालियर में ) उस समय वीरमदेवक राज्यका उल्लेख किया गया है। और अमरकीर्ति षट्कर्मोपदेशकी प्रामेरप्रतिमें जो सं० १४७६ की लिखी हुई है उसमें भी वीरमदेव राज्यका उल्लेख है और वीरमदेवका पौत्र हूंगरसिंह अपने पिता गणपतिदेव के राज्यका उत्तराधिकारी मं० १४८१ रहा है । १४६२ से
कुछ बादमें भी
में 'हुआ। वीरमदेवका राज्य सं० १४६६ से इससे यह जाना जाता है कि प्रन्थकर्ता कवि
पद्मनाभने सं०