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________________ ( ११६ ) I Tuके भट्टारक वादभूषणके पट्टधर शिष्य थे और पद्मकीर्तिके गुरुभाई थे । इन्होंने इसे बंगदेशमें स्थित चम्पानगरीके समीप 'अकच्छपुर' (अकबरपुर ) नामक नगर आदिनाथ चैत्यालय में वि० सम्वत् १६५९ में माघशुक्ला पंचमी शुक्रवारके दिन बनाकर पूर्ण किया । साह नानू वैरिकुलको जीतने वाले राजा मानसिहके महामात्य ( प्रधानमंत्री ) खण्डेलवाल वंशभूषण गोधागोत्रीय साह रूपचन्दके सुपुत्र थे । साह रूपचन्द जैसे श्रीमन्त थे वैसे ही समुदार, दाता, गुणज्ञ और जिनपूजनमें तत्पर रहते थे । साह नानूकी प्रार्थना और बुध जयचन्द्रके आग्रहसे इस प्रन्धकी रचना हुई है। अष्टापदशैल (कैलाश) पर जिस तरह भरत चक्रवर्तीने जिनालयोंका निर्माण कराया, उसी तरह साह नानूने भी सम्मेदशैल पर निर्वाण प्राप्त बीस drisis मन्दिर बनवाए थे और उनकी अनेक बार यात्रा भी की थी । भट्टारक ज्ञानकीर्तिने सोमदेव, हरिषेण, वादिराज, प्रभंजन, धनंजय, पुष्पदन्त और वासवसेन श्रादि विद्वानोंके द्वारा लिखे गए यशोधर महाराजके चरितको अनुभव कर स्वल्पबुद्धिले संक्षिप्तरूपमें इस ग्रन्थको रचना की है । अथक प्रशस्तिमें भ० ज्ञानकीर्तिने अपने पूर्ववर्ती उमास्वाति, समन्तभद्र, वादीभसिंह, पूज्यपाद, भट्टाकलंक और प्रभाचंद्र इत्यादि farrier स्मरण किया है। प्रस्तुत ग्रंथ ६ सर्गो में समाप्त हुआ है और उसे साह नानुके नामांकित किया गया है । - परमानन्द जैन
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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