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(१००) १३२वीं प्रशस्ति 'चन्द्रप्रभपुराण' को है जिसके कर्ता पं० शिवाभिराम हैं। जिनका परिचय ५८ वी 'षट् चतुर्थवर्तमानजिनार्चन' की प्रशस्तिमें दिया हुआ है।
१३४ वी प्रशस्ति 'द्रव्यसंग्रहवृत्ति की है जिसके कर्ता पं० प्रभाचन्द्र हैं जो समाधितंत्रादिके प्रसिद्ध टीकाकार प्रभाचन्द्राचार्यले भिन्न जान पडते हैं। क्योंकि इस प्रशस्निके श्रादि मंगल पद्यकी भी वृत्ति दी गई है, जिसमें इस ग्रन्थका नाम 'षटद्रव्यनिर्णय' बतलाया गया है। प्रभाचन्द्राचार्यने अपने ग्रन्थोंके मंगलपद्योंकी कहीं पर भी कोई टीका नहीं की है। ऐसी स्थितिमें उक्र 'द्रव्यसंग्रहवृत्ति' उन प्रभाचन्द्राचार्यको कृति नहीं हो सकती, वह किसी दूसरे ही प्रभाचन्द्र नामके विद्वानको कृति होनी चाहिए। हों, यह हो सकता है कि षटद्रव्यनिर्णय नामका कोई विवरण प्रभाचन्द्राचार्यका बनाया हुआ हो, जो ग्रंथक मंगलाचरणमें प्रयुक्त है और मंगलाचरण वाले पथकी वृत्ति बनाने वाले कोई दूसरे ही प्रभाचंद्र रहे हों और यह भी संभव है कि उक्त पद्य भी वृत्तिकारका ही हो, प्रभाचन्द्राचार्यका नहीं हो; क्योंकि इस नामके अनेक विद्वान हो चुके हैं। पं० प्रभाचंद्र कब हुए, उनकी गुरु परम्परा क्या है और उन्होंने इस वृत्तिको रचना कब की? यह कुछ ज्ञात नहीं होता।
१३श्वी, १३६वों, १३७वीं और १३८वीं ये चारों प्रशस्तियाँ क्रमशः 'पंचास्तिकाय-प्रदीप', 'आत्मानुशासनतिलक', 'श्राराधनाकथाप्रबंध'
और 'प्रवचनसरोजभास्कर' नामके ग्रंथोंकी हैं जिनके कर्ता प्रभाचन्द्राचार्य हैं, जिनका परिचय ६४ वीं प्रशस्तिमें दिया गया है। ___१३६ वीं प्रशस्ति त्रैलोक्यदीपक' की है, जिसके कर्ता पं० वामदेव हैं । जो मूलसंबके भधारक विनयचन्द्र के शिष्य-त्रैलोक्यकीर्तिके प्रशिष्य और मुनि लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य थे। पंडित वामदेवका कुल नैगम था। नैगम या निगम कुल कायस्थोंका है, इससे स्पष्ट है कि पंडित वामदेव कायस्थ थे । अनेक कायस्थ विद्वान जैनधर्मके धारक हुए हैं। जिनमें हरिचंद,