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[जैनधर्ममीमांसा उन्हें अणुक्त न कहकर गृहस्थात कहना चाहिये ।
गृहस्थों के बारह व्रत कहे गये हैं । अहिंसा आदि पाँच व्रत तो वे ही है-जिनका पहिले विवेचन किया गया है । इसके अतिरिक्त तीन गुणत्रत और चार शिक्षाबत और है । इसमें से कुछ तो अनावश्यक है। संक्षेप में उनका विवेचन किया जाता है।
. गुणव्रत तीन हैं और शिक्षात चार है। अणुव्रत में वृद्धि करनेवाले व्रत गुणव्रत हैं और संयम की या मुनिधर्म की शिक्षा देनेवाले व्रत शिक्षाक्त हैं। यहाँ तक जैन शास्त्रों में मतभेद नहीं है, परन्तु गुणव्रत और शिक्षाबत के नामों में मतभेद है। एक मत-जिसका आचार्य उमास्त्राति आदि ने उल्लेख किया है-के अनुसार सातो का क्रम यह यह है।
तीन गुणव्रत-दिग्बत, देशवत, अनर्थदंडवत । चार शिक्षाबत-सामायिक, प्रोषधोपवास, उपभोगपरिभोगापरमाण, अतिथिसविभाग ।
___गुणव्रत प्रायः जीवन भर के व्रत * होते है. और शिक्षाप्रत प्रति दिन के अभ्यास के क्त है । इस लक्षण के अनुसार देशवितिको गुणत्रत में शामिल नहीं कर सकते, परन्तु आचार्य उमास्वाति ने यह परिवर्तन क्यों किया इसका-ठीक ठीक उल्लेख मही मिलता। पताम्बर सम्प्रदाय की आगम परम्परा में भी देश
-गुणा अणुव्रतामामुपकारार्थ ब्रां गुणवतम, दिग्वित्यादीनाम. शुव्रतानाहणार्थत्वात् । तथा मयति शिक्षाबतं । शिक्षा अभ्यासाय अंत दंशावकाशिकादर्दान! प्रांतदिक्साम्यसनीयत्वात् । अतएव मुणवतावस्य भेदः । जुनबतं हि प्रायो वावजांविकमाः।
- मामाRधर्मामृत टीका -1