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________________ ३६६ ] पाँचवाँ अध्याय सामग्री को खोजने के लिये पूर्ण निष्पक्षता की जरूरत होती है । साथ ही कठोर परीक्षण करना पड़ता है । वचन की सत्यता को जाँच करने के लिये यह देखना पड़ता है कि वह आप्त का वचन हैं या नहीं ? असत्यता के दो कारण हैं, अज्ञान और कत्राय । जिसमें ये दो कारण न हो, वह आंत कहलाता है । यह आवश्यक नहीं है कि उसमें अज्ञान और कषाय का पूर्ण अभाव हो । सिर्फ इतना देखना चाहिये कि जो बात यह कह रहा है, उस विषय में वह अज्ञानी या कत्रायी तो नहीं है 'यदि दो में से एक भी कारण वहां सिद्ध हो जाय तो उस कथा को इतिहास नहीं कह सकते । जैसे समन्तभद्र के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वे आगामी उत्सर्पिणी कालमें तीर्थंकर [१] होंगे । " जिसने यह बात कही है उस में अज्ञान दोष है । क्योंकि कौन मनुष्य मरने के बाद क्या होगा, इस विषय का वक्तव्य ऐतिहासिक जगत में प्रामाणिक नहीं माना जा सकता । इसके अतिरिक और भी इसमें बाधाएं हैं। जैनशास्त्रों के अनुसार ऐसा एक भी आचार्य नहीं हुआ, जिस को प्रत्यक्ष ज्ञान हो । तंत्र इस बात को कौन कह यह कविकल्पना ही सिद्ध हुई । हां, इससे समन्तभद्र का [४] व्यक्तित्व बहुत महान था, यह बात अवश्य साबित होती है । यहां सकता है ? इससे समन्तभद्र के बाद परलोक आदि का (१) उक्तं च समंतभद्रेणोत्सर्पिणीकाले आमामिनि भविष्यत्तर्थि करपरमदनेन --षट प्रोमृतटीका । (२) श्रीमूलसंघव्योमन्दुर्भारते भावितीर्थकृत । देश समन्तभद्रारुप मुनिर्जीयात्पदार्द्धकः ॥ - विक्रान्तैकारव
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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