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________________ धर्म-मीमांसाका उपाय जिससे सब सम्प्रदायोंमें तथा उनके अनुयायिव!में आदर और प्रेम बढ़े और सबके जुदे जुदे संगठनके बदले सबका एक संगठन बने । हिन्दुधर्मका कर्मयोग, जैनधर्मकी अहिंसा और तप, बौद्धधर्मकी दया, ईसाईधर्मकी सेवा, इस्लामका भ्रातृत्व, ये सब चीजें सभीके लिये उपयोगी हैं । अन्य सम्प्रदायोंमें भी अनेक भलाइयाँ मिलेंगी । इन्हींको मुख्यता देकर अगर हम विचार करें, तो सब धर्मोसे हमें प्रेम भी होगा, आपसका द्वेष भी नष्ट होगा, तथा सबका एक संगठन भी बन सकेगा। इसके लिये हमें जहाँतक बन सके सभी सम्प्रदायोंके धर्मस्थानोंका उपयोग करना चाहिये । अपने सम्प्रदायोंके मंदिरोंमें भी अन्य सम्प्रदायोंके महात्माओंके स्मारक रखना चाहिये । सभी सम्प्रदायोंके महात्माओंके स्मारक जहाँ बराबरीसे रह सकें, ऐसे स्थान बनाना चाहिये । इस प्रकार सर्व-धर्म-समभावको व्यावहारिक रूप देने और उसे जीवन में उतारनेकी पूरी कोशिश करना चाहिये । ४--बहुत-सी ऐसी बातें हैं जो एक समय अच्छी थीं, उपयोगी थीं, क्षन्तव्य थीं, इसलिये शास्त्रोंमें या रूढ़िमें स्थान पा गईं हैं; परन्तु आज वे उपयोगी नहीं हैं, इसलिये उन्हें हटा देना चाहिये । सिर्फ इसी वातको लेकर कि वे हमारे शास्त्रोंमें लिखी हैं, या पुरानी हैं, उन्हें चालू रखना अन्याय है । जो सर्व-धर्म-समभावी है, वह किसी एक धर्मशास्त्रकी दुहाई देकर किसी अनुचित बातका समर्थन क्यों करेगा? एक सम्प्रदायके शास्त्रमें किसी बातका विधान हो सकता है और दूसरे सम्प्रदायके शास्त्रमें उसका निषेध हो सकता है, तब सर्व-धर्म-समभावीके सामने एक जटिल प्रश्न खड़ा हो जाता है कि वह किसकी बात माने ? ऐसी हालतमें उसे यही देखना चाहिये कि कल्याण
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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