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सम्यग्दर्शनके चिह्न
परिणाम हैं और इस भयमें जो परिणाम हैं उनमें एक तरहका जातिभेद है । सिर्फ दोनोमें शब्दकी समानता पाई जाती है। समानताका कारण यह है कि दोनोमें दूर हटनेकी भावना है । संवेगमें हम बुरे कामसे दूर हटते हैं जब कि भयमें हम अच्छे कामसे दूर हटते हैं । दूर हटनेकी समानता दोनोमें है परन्तु इन दोनोंके कार्य, कारण, प्रयोजन आदिमें जमीन-आसमानसे भी अधिक अन्तर है।
दर्शनाचारके आठ अङ्ग सम्यक्त्वके प्राप्त होनेपर प्राणीके आचरणमें जो विशेषता आ जाती है उसे दर्शनाचार कहते हैं जिसके आठ अङ्ग हैं। निःशंकता, निःकांक्षता, निर्विचिकित्सता, अमूढदृष्टित्व, उपगृहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना । जैसे हाथ, पैर आदि अंगोंके वर्णनसे शरीरका वर्णन हो जाता है उसी प्रकार निःशंकता आदि अंगोंके वर्णनसे दर्शनाचारका वर्णन होता है।
निःशंकता-कल्याणके अर्थात् सुखके मार्गपर दृढ़ विश्वास रखना निःशंकता है । सम्यक्त्वका यह प्रथम और मुख्य अंग है । दृढ़-विश्वासके विषयमें मैं पहिले कह चुका हूँ। वह अन्ध-श्रद्धासे बिलकुल जुदा है।
किसी सम्प्रदाय, किसी शास्त्र या किसी व्यक्तिके ऊपर अविश्वास करनेसे निःशंकतामें दोष नहीं लगता किन्तु कल्याणके सत्यमार्गपर अविश्वास करनेसे निःशंकता कलंकित होती है। __ कल्याणमार्गको समझानेके लिये अगर किसी कथाका उदाहरण दिया जाय, और वह कथा किसीको सत्य न मालूम हो, तो भले ही वह उस कथापर अविश्वास करे किन्तु इसलिए यदि वह उस कथाके
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