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________________ जैनधर्म-मीमांसा wwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmwwwwwwwww namamarmarrrrrrrrrrrrrrrrrior २३८ कि इनका सबसे छोटा टुकड़ा भी होगा। वही परमाणु है । कोई गुण नया नहीं पैदा होता इसलिये स्कंधों ( परमाणु-पिण्ड ) में जितने गुण पाये जाते हैं उतने हम परमाणुओंमें भी मानते हैं। मतलब यह है कि स्कंधोंमें हम जितने गुण साबित कर सकते हैं उससे एक गुण भी अधिक परमाणुमें नहीं कह सकते। जब परमाणु अदृश्य है तब किसी गुणकी सत्ता पहिले स्कंधोंमें ही साबित करना चाहिये; परमाणुके गुणोंसे हम स्कंधमें गुण साबित नहीं कर सकते किन्तु स्कंधके गुणोंसे परमाणुमें गुण साबित किये जाते हैं । साधारण स्कंधोंमें चैतन्य सिद्ध नहीं होता इसलिये परमाणुओंमें चैतन्य कैसे माना जा सकता है ? जिन स्कंधों ( शरीर मस्तिष्कआदि ) में चैतन्य मालूम होता है उनके विषयमें तो यहाँ विवाद ही चल रहा है कि वह चैतन्य उन स्कंधोंका है अथवा उनसे विभिन्न किसी दूसरे द्रव्यका ! मस्तिष्कमें चैतन्य तभी साबित हो सकता है जब परमाणुओंमें चैतन्य साबित हो जाय और परमाणुओंमें चैतन्य तभी साबित हो सकता है जब कि मस्तिष्क आदिमें साबित हो आय । जब तक यह अन्योन्याश्रयदोष दूर न हो जाय तब तक 'गुणके भेदसे मुणीमें भेद होता है ' इस नियमके अनुसार चैतन्यवाले पदार्थको एक भिन्न द्रव्य ही मानना पड़ेगा। प्रश्न-यदि दूसरे स्कंधोंमें चैतन्य न होनेसे आप परमाणुमें चैतन्य न मानेंगे और परमाणुमें चैतन्य सिद्ध न होनेसे मस्तिष्क आदिमें चैतन्य न मानेंगे और इस तरह एक नये द्रव्यकी सिद्धि करेंगे तो मशीनोंमें भी- एक नये द्रव्यकी कल्पना करना पड़ेगी, क्योंकि एक यन्त्र (मशीन ) से जो काम होता है वह यन्त्रेतर
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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