________________
धान न करदें नबनक हम अपनी मूर्तिपूजा की प्रशंसा में वाह कितना ही गग अलापं किन्तु उसका दूमरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता । अन्य धर्मावलंबी ही क्या , बहुत से जनी भी मूर्तिपूजा के हमारे इम प्रचालित ढंग को अर्थ तथा समय का दुरुपयोग कग्नवाला समझने लगगये हैं
और इसके परिणामस्वरूप आज दिगम्बर जैनियों में तारन पंथी और वनाम्नर जैनियों में स्थानकवासी य दो पंथ मूर्ति पजा के घोर विगंधी दृष्टि में भाई हैं । इस विरोध का काग्गा भी यदि हम नियन भाव में विचार करें तो हमें मानमा मकना है और वह यही कि हमारी मूर्तिपूजा पारकन्न अपने लक्ष्य में भृष्ठ और आदर्श मे न्युन होकर कारी बुनपानी म्हगई है . उममें सूखा भावहीन क्रिया कांड फैला हुआ है और लाखों रुपया पूजा और प्रनिता के नाम में प्रतिवर्ष ग्यर्च करने और वहुन में आडम्बर करने पर भी मुधार कुछ नहीं होपाना किन्तु ममाज में तरह के अनाचारों की ही वृद्धि होती जारही है । गर्मा परिस्थिनि में हम (जैनी) म्वयं ता उद्देश्य में अगंन गिर्ग हुई मानपूजा करने हैं और इसरमागों की बुराई करने के लिंग पादर्श मृतिपूजा का राग अलाप पया इसमें बुद्धिमानी है ?