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उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर में बहुधा हमार्ग (जैनियों की) तरफ मे कहाजाता है:
१. जैन शाखों में पूजा ढा प्रकार की कही गई है.-एक द्रव्यपूजा और दूसरी भावपूजा । जल, चंदन आदि द्रव्यों का
आश्रय लेकर भेंट चढ़ाना द्रव्यपूजा है और गुणों का विचारना भावपूजा है।
गृहस्थों के मन का दव्यपूजा के द्वार। भावपूजा में आठ द्रव्यों का आश्रय लेकर जगाना मुगम होता है । इसलिये आट दल्यों के द्वाग आठ प्रकार की भावना करनी चाहिए :
१. जल चढ़ा कर यह भावना करना कि जन्म,जग,
मरण का गंग दूर हो । २. चंदन से भव आताप की शांति हो । - ३. अक्षत- मे अविनाशी पद की प्राति हो ! ४-पुष्प- से काम विकार का नाश ह।। ५. नैवेदा-सं क्षुधा रोग शांत हो ।
६. दीप- म माह अंधकार का नाश हो। ... एप में आष्ट कर्म का नाश हो ।
८. पल-से गाक्ष पद की प्रानि हो ।