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का धर्म के नाम पर प्रयोग करते हैं, अपन २ श्रादर्श पुरुषों के चित्र धर्मस्थानी और मकानों में लटकांन हैं और उनके जन्म
और मरमा के पवित्र दिनों के प्रतिवर्ष उत्भव करने हैं, किन्तु इन सब कार्यों का उद्देश्य मिवाय इसके और कुछ नहीं होसकता कि य मव कार्य परमात्मा की और उन. महा पुरुषों की स्मृति दिलानेवाले हैं । जैनिया के मंदिग में स्थापित की हुई अहंती की मूर्तियां भी परमात्मा का ही पनि दिलाने वाली हैं और इसलिये, जो लोग उनकी उपासना की निंदा करने हैं. के वास्तव में जैनधर्म के सिद्धान्तों में अनभित है।
किन्नु हम में पन्छा जामकता है :- क्योंजी : यदि जैन धर्म की मृतिपूजा ठीक वेमी ही श्रादर्श उपासना है कि जिम की प्रशंसा करने में तुमने इनने मपं. रंग बाल हैं तो क्यों श्रात कल तुम (जैनी ) हजारों रुपयों के चावल, बादाम और केशर चदाकर उन मूर्तियों को प्रसन्न करने की कोशिश करने रहने हो, क्यों उनको मुग्व दुःख की दनवाली ममझ कर अपन दुःख के निवारण के लिये तरह २ की स्तुति और पूजा करते हो
और यदि तुम्हें खुद को फुरसत नहीं मिलती है तो नोकरों के द्वारा उनकी मंशा पूजा क्यों कगते हो ? निस्संदेह, इन सब प्रश्नों का उत्तर देना जारी है और जब नक हम इनका ममा