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इतिहास
प्रभाव तो उनका तमिल साहित्यके ऊपर पडा है । विराप काल्डवेल' का कहना है कि जैनोकी उन्नतिका युग ही तमि साहित्यका महायुग है । जैनोने तमिल, कनडी और दूसरी लोकभापानका उपयोग किया इससे जनता के सम्पर्कमे वे अधिक 14 ओर जैनधर्मके सिद्धान्तोका भी जन साधारणमे खूब प्रचार हुआ।
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एक समय कनडी और तेलगु प्रदेगोसे लेकर उड़ीसा तक जैनधर्मका वडा प्रभाव था । शेषगिरि रावने अपने Andhta karnala Jainism मे जो काव्य-संग्रह किया है उससे पता चलत ह कि आजके विजगापट्टम, कृष्ण, नेलोर वगैरह प्रदेशोमे प्राचीन कालमे जैनवमं फैला हुआ था और उसके मन्दिर बने हुए थे ।
किन्तु जैनधर्मका सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान तो कर्नाटक प्रान्तव इतिहास मे मिलता है । यह प्रान्त प्राचीनकालसे ही दिगम्बर जैन सम्प्रदायका मुख्य स्थान रहा है । इस प्रान्तमे मोर्य साम्राज्य के बा आन्ध्रवंजका राज्य हुआ, आन्ध्र राजा भी जैनधर्मके उन्नायक थे आन्ध्रवदाके पञ्चात् उत्तर पश्चिममे कदम्वोने और पूर्व पल्लवोने राज्य किया । कदम्ववके अनेक शिलालेख मिले है जिनमें से बहुतसे लेखो मे जैनोंको दान देनेका उल्लेख मिलता है। इ • राजवंशका धर्म जैन था । सन् १९२२ - २३ की एपिग्राफी र वर्णित है कि वनवास के प्राचीन कदम्ब और चालुक्य, जिन्हो पल्लवोके पश्चात् तुलुव देशमे राज्य किया, निस्सन्देह जेन ये 1 भी बहुत सभव है कि प्राचीन पल्लव भी जैन थे, क्य . "Comparative Grammat of the Dravidian South Indian family of languages"
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तीसरी आवृत्ति (लडन १६१३) २. "Early kadambas of Banbası and Chalukyas, wh succeeded pallavas as overlords of Tuluva were u doutedly Jains and it is probable that early pall... were the same"