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, इतिहास
उत्साह दिखलाया उसके फलस्वरूप जैनधर्मका केन्द्र मगधसे उठकर कलिंग चला गया जहाँ हुएनत्सागके समयतक जनधर्म फैला हुआ था। ___ खारवेल शिलालेखकी तरह ही प्रसिद्ध मथुराके शिलालेख प्रकट , करते है कि ईसाकी प्रथम शताब्दीसे बहुत पहलेसे मथुरा जैनधर्मका एक मुख्य केन्द्र था।
इस प्रकार भगवान महावीरके निर्वाणके पश्चात लगभग पांच शताब्दियो तक जैनधर्म उत्तर भारतके विभिन्न प्रदेशोमे बडी तेजीकप साथ उन्नति करता रहा । किन्तु सातवी शताब्दीके पश्चात्य उसका पतन प्रारम्भ हो गया।
आगे उत्तर भारतके प्रत्येक प्रान्तमे भगवान महावीरके बाद जनधर्मकी स्थितिका परिचय कराते हुए ऐसे राजवशो और प्रमुख राजाओका परिचय कराया जाता है, जिन्होने जैनधर्मको अपनाया या जिनके साहाय्यसे जैनधर्म फूला और फला । उससे पहले उत्तर भारतके प्रारभिक इतिहासका विहगावलोकन कराना अनुचित न होगा।
भगवान महावीरके समयमे मगधके सिंहासनपर शिशुनाग वशी राजा बिम्बसार उपनाम श्रेणिक विराजमान थे। उनका उत्तरा धिकारी उनका पुत्र अजात शत्रु (कुणिक) हुआ। अजात शत्रुन अपने नाना चेटकके राज्यपर आक्रमण करके वैशाली तथा लिच्छवि देशोको मगध साम्राज्यमे मिला लिया और राजगृहीके स्थानपर वैशालीको राजवानी बनाया। अजात शत्रुके पुत्र उदयनने पाटलीपुत्रको मगधकी राजधानी बनाया। इस वशके राज्यच्युत होनेपर नन्दवशका राज्य हुआ और चन्द्रगुप्त मौर्यने नन्दोका सिंहासन छीन लिया। ___चन्द्रगुप्तके बाद उसका पुत्र विन्दुसार गद्दी पर बैठा। और विन्दुसारके बाद उसका पुत्र अशोक पदासीन हुआ। अशोकके बाद उसके चार उत्तराधिकारी और हुए। अन्तिम मौर्यसम्राट वृहद्रथको ' उसके सेनापति पुष्यमित्रने मारकर सिंहासनपर कब्जा कर लिया और इस तरह शुंगवशका राज्य हुआ।