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जैनधर्म विवाह नहीं करूंगा। वे रथसे तुरन्त नीच उतर पडे और मुकुट और गनको फेंककर वनकी ओर चल दिये। वारातमें इस समाचारके फैलते
कोहराम मच गया। जूनागढके अन्त पुरमें जब राजमतीको यह माचार मिला तो वह पछाड़ खाकर गिर पड़ी। बहुतसे लोग नेमिनाथको लौटाने के लिये दौड़, किन्तु व्यर्थ । वे पासमे ही स्थित गिरनार हाइपर चढ़ गये और सहलान वनमें भगवान ऋषभदेवकी तरह सब रिपान छोडकर दिगम्बर हो मात्मध्यानमे लीन हो गये और केवलजानको प्राप्तकर गिरनारसे ही निर्वाण लाभ किया।
भगवान पार्श्वनाथ भगवान पार्श्वनाथ २३ वें तीर्थङ्कर थे । इनका जन्म माजसे लगभग तीन हजार वर्ष पहले वाराणसी नगरीमें हुआ था। यह भी राजपुत्र से। इनकी चित्तवृत्ति प्रारम्भसे ही वैराग्यकी ओर विशेष थी। मातापैताने कई बार इनसे विवाहका प्रस्ताव किया किन्तु उन्होंने सदा हमकर टाल दिया। एक बार ये गंगाके किनारे घूम रहे थे। वहाँपर कुछ तापसी आग जलाकर तपस्या करते थे। ये उनके पास पहुंचे और घोले-'इन लक्कडो को जलाकर क्यो जीवहिंसा करते हो।' कुमारकी खात सुनकर तापसी बडे झल्लाये और बोले-'कहाँ है जीव ?" तब कुमारने तापसीके पाससे कुल्हाड़ी उठाकर ज्यो ही जलती हुई लकडीको मचीरा तो उसमेंसे नाग और नागिनका जलतामा जोडा निकला। कुमार
ने उन्हे मरणोन्मुख जानकर उनके कानमें मूलमत्र दिया और दुःखी म्होकर चले गये। इस घटनासे उनके हृदयको बहुत वेदना हुई। पजीवनकी अनित्यताने उनके चित्तको और भी उदास कर दिया गौर
महाभारत में भी लिखा है--
युगे युगे महापुण्प दृश्यते द्वारिका पुरी। अवतीर्णो हरियंत्र प्रभासशशिभूषण.॥ रेवतादी जिनो नेमियुगादिविमलाचले। ऋषीणामाश्रमादेव मक्तिमानस्य कारणम ।।