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जैनधर्म
चढने के लिये धर्मशाला के पाससे ही पक्की सीढियाँ प्रारम्भ हो जाती है
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और अन्ततक चली जाती है । २२ वें तीर्थङ्कर श्रीनेमिनाथने इसी पहाडके सहस्रान वनमें दीक्षा धारण करके तप किया था । यही उन्हें 'केवलज्ञान हुआ था और यहीसे उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। 'उनकी वाग्दत्ता पत्नी राजुलने भी यही दीक्षा ली थी। पहले पहाडपर पहुँचने पर एक गुफा में राजुलकी मूर्ति बनी हुई है। तथा दिगम्बर और 'श्वेताम्बरोंके अनेक मन्दिर बने हुए है । दूसरे पहाड़पर चरण चिह्न है यहाँसे अनिरुद्ध कुमारने निर्वाण प्राप्त किया था। तीसरेसे शम्भु कुमारने निर्वाण लाभ किया था। चौथे पहाडपर चढनेके लिये सीढियाँ नही है इसलिये उसपर चढना बहुत कठिन है । यहाँसे श्री कृष्णजीके पुत्र प्रद्युम्न कुमारने मोक्ष प्राप्त किया है और पाँचवें पहाडसे ' | भगवान् नेमिनाथ मुक्त हुए है । सब जगह चरण चिह्न है तथा कही - कही पहाडमें उकेरी हुई जिन मूर्तियाँ भी है। जैन सम्प्रदायमें शिखरजीकी तरह इस क्षेत्रकी भी बडी प्रतिष्ठा है ।
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शत्रुंजय - पश्चिमीय रेलवेके पालीताना स्टेशनसे |१|| -२ मील तलहटी है | वहाँसे पहाडकी चढाई आरम्भ हो जाती है । रास्ता साफ है। पहाड़के ऊपर श्वेताम्बरोंके करीब साढ़े तीन .! हजार मन्दिर है जिनकी लागत करोडो रुपया है । श्वेताम्बर भाई सब तीर्थो से इस तीर्थको बडा मानते है । दिगम्बरोका तो केवल एक मन्दिर है । पालीताना शहरमें भी श्वेताम्बरोकी २०-२५ धर्मशालाएँ और अनेक मन्दिर है । यहाँ एक आगममन्दिर अभी ही बनकर तैयार हुआ है उसमें पत्थरोपर श्वेताम्बरों के सब आगम खोदे गये है । यहाँसे तीन पाण्डुपुत्रो और बहुतसे मुनियोने मोक्ष लाभ किया था ।
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पावागढ - - - वडोदासे २८ मोलको दूरीपर चांपानेरके पास पावागढ़ सिद्ध क्षेत्र है । यह पावागढ एक बहुत विशाल पहाडी किला है। पहाड़ पर चढनेका मार्ग एक दम कंकरीला है। पहाड़के ऊपर आठ दिस मन्दिरोके खण्डहर है, जिनका जीर्णोद्धार कराया गया है ।