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________________ विविध सिद्धवरकूट- इन्दौर से खण्डवा लाईनपर मोरटक्का नामका स्टेशन है । वहाँ से ओंकारजी जाते है जो नर्मदाके तटपर है । यहाँसे नावमें सवार होकर सिद्धवरकूटको जाते है । यह क्षेत्र रेवानदी के तटपर है । यहाँसे दो चक्रवर्ती व दस कामदेव तथा साढ़े तीन करोड़ मुनि मुक्त हुए है । ऊन - खण्डवासे ऊन मोटरके द्वारा जाया जाता है । ३-४ घंटेका रास्ता है । यहाँ एक प्राचीन मन्दिर है जो सं० १२१८ का बना हुआ है । दो और भी प्राचीन मन्दिर है जो जीर्ण हो गये है । यह क्षेत्र कुछ ही वर्ष पहले प्रकाशमें आया है। इसे पावागिरि सिद्ध क्षेत्र कहा जाता है । ३२७ बड़वानी - बड़वानी से ५ मील पहाड़पर जानसे बड़वानी क्षेत्र मिलता है । वडवानीसे निकट होनेके कारण इस क्षेत्रको वडवानी कहते है वैसे इसका नाम चूलगिरि है । इस चूलगिरिसे इन्द्रजीत और कुम्भकर्णने मुक्ति प्राप्त की थी । क्षेत्रकी वन्दनाको जाते हुए सबसे पहले एक विशालकाय मूर्तिके दर्शन होते है । यह खड़ी हुई मूर्ति भगवान ऋषभदेवकी है, इसकी ऊँचाई ८४ फीट है। इसे बावन गजाजी भी कहते है । सं० १२२३ में इसके जीर्णोद्धार होनेका उल्लेख मिलता है। पहाड़पर २२ मन्दिर है । प्रतिवर्ष पौष सुदी ८ से १५ तक मेला होता है । बम्बई प्रान्त ६ तारंगा - यह प्राचीन सिद्ध क्षेत्र गुजरात प्रान्तके महीकाँटा जिले | में पश्चिमीय रेलवेके तारंगा हिल नामके स्टेशनसे तीन मील पहाड़के ऊपर है । यहाँसे वरदत्त आदि साढे तीन करोड मुनि मुक्त हुए हैं । यहाँपर दोनों सम्प्रदायोके अनेक मन्दिर और गुमटियाँ है । गिरनार - सौराष्ट प्रान्तमें जूनागढके निकट यह सिद्धक्षेत्र वर्तमान है । जूनागढ़ स्टेशनसे ४-५ मीलकी दूरीपर गिरिनार पर्वतकी तलहटी है, वहाँ दोनों सम्प्रदायोंकी धर्मशालाएँ है पहाड़पर '
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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