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७-विविध
१ कुछ जैनवीर कुछ लोगोंकी धारणा है कि जैन हो जानेसे मनुष्य राष्ट्रके कामका नही रहता, बल्कि राष्ट्रका भार बन जाता है। किन्तु यह धारणा एकदम गलत है। देशकी रक्षाके लिये एक सच्चा जैन सब कुछ उत्सर्ग कर सकता है। प्राचीन समयमे देशकी रक्षाका भार क्षत्रियोपर था। वे प्रजाकी रक्षाके लिये युद्ध करते थे और अपराधियोंको प्राणदण्डतक देते थे। सभी जैन तीर्थङ्करोने क्षत्रियकुलमें जन्म लिया था और उनमें से पांच तीर्थङ्करोंके सिवाय, जो कुमार अवस्थामें ही प्रवजित होगये थे, शेष सभीने प्रवज्या ग्रहणसे पूर्व अपने पैतृक राज्यका संचालन और संवर्धन किया था। उनमेसे तीन तीयङ्करोने तो दिग्विजय करके चक्रवर्ती पद प्राप्त किया था । बाईसवे तीर्थधर नेमीनाथ श्रीकृष्णके चचेरे भाई थे और गृह परित्यागसे पूर्व युवावस्थामें वे महाभारतके युद्ध में पाण्डवोकी ओरसे लडे भी थे। जैन पुराण युद्धोके वर्णनसे भरे पड़े है। प्राचीन युगके वेश्य भी न केवल युद्धोमें भाग लेते थे, किन्तु सेनाके नायकतक बनते थे। शिशुनाथ वंशी राजा श्रेणिक (बिम्बसार) के नगरसेठ अर्हद्दासके पुत्र जम्वुकुमारके, जिन्होंने युवावस्थामें जिनदीक्षा धारण की और अन्तिम केवली हुए, युद्ध करनेके वर्णन जैन शास्त्रोंमे वर्णित है। . आज यद्यपि जनधर्मके अनुयायी केवल वैश्य देखे जाते है किन्तु जिन वैश्य जातियोमें जैनधर्म पाया जाता है, उनमेसे अनेक जातियों पहले क्षत्रिय थी, राज्यसत्ता चली जाने और व्यवसायके बदल जाने से वे अब वैश्य जातियाँ वन गई है। अत क्षत्रियोका धर्म आज वनियोका धर्म बन गया है। इस पुस्तकके 'इतिहास' विभागमें जैनधर्मके अनु