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जैन साहित्य
२५५ परम्परामें मल्लवादी, हरिभद्र और अभयदेव सूरिका है। छहो विद्वान् दार्शनिक क्षेत्रके जाज्वल्यमान नक्षत्र थे।
। हेमचन्द्र (ई० १३वी शती) विद्वानोमे आचार्य हेमचन्द्रको बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। गुर्जर . नरेश सिद्धराज जयसिंह उनका पूर्ण भक्त था । उसके नामपर ही
उन्होने अपना सिद्ध हैम व्याकरण वनाया। उसीका एक अध्याय प्राकृत व्याकरण है जो अति प्रसिद्ध है। आचार्यका जन्म स० ११४५ में हुआ। नौ वर्षकी अवस्था मे दीक्षा ली और सं० ११६२ मे आचार्य पद प्राप्त किया। सं० १२२६ मे उनका स्वर्गवास हो गया। न्याय, व्याकरण, कान्य, कोप आदि सभी विषयोपर उन्होने अद्भुत ग्रन्थ लिखे। जयसिंहका उत्तराधिकारी राजा कुमारपाल तो उनका शिष्या ही था।
। यशोविजय (ई. १८वीं शती) श्वेताम्वर परम्परामें हेमचन्द्राचार्यक पश्चात् यशोविजय जैसा सर्वशास्त्रपारंगत दूसरा विद्वान् नहीं हुआ। इन्होने काशीमे विद्याध्ययन किया था और नव्यन्यायके न केवल विद्वान् ही थे किन्तु उसी शैलीमे कई ग्रन्थ भी रचे। उनकी जैन तर्कभाषा, ज्ञान विन्दु, नयरहस्य, नयप्रदीप आदि ग्रन्थ अध्ययन करने योग्य है। इनकी विचारसरणि बहुत ही परिष्कृत और सतुलित थी।
.. जैन कला और पुरातत्त्व जैन परम्पराके अनुसार इस अवसर्पिणी कालमे ह्रास होते होते व भोगभूमिका स्थान कर्मभूमिने ले लिया तो भगवान् ऋषभदेवने निताके योगक्षेमके लिए पुरुषोके बहत्तर कलाओं और स्त्रियोके
सठ गुणोको बतलाया। जैन अंग साहित्यके तेरहवे पर्वमे उनका