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जैन साहित्य
अकलंक' (ई० ६२० से ६८० )
यह जैनन्यायके प्रतिष्ठाता थे । प्रकाण्ड पण्डित, घुरन्धर शास्त्रार्थी और उत्कृष्ट विचारक थे । जैनन्यायको इन्होने जो रूप दिया उस ही उत्तरकालीन जैन ग्रन्थकारोने अपनाया । वौद्धोंके साथ इनका खूब संघर्ष रहा। स्वामी समन्तभद्रके यह सुयोग्य उत्तराधिकारी थे । इन्होंने उनके आप्तमीमासा ग्रन्थपर 'अष्टशती' नामक भाष्यकी रचना की। इनकी रचनाएँ दुरूह और गम्भीर है । अवतक इनके अष्टशती, प्रमाणसंग्रह, न्यायविनिश्चय, लघीयस्त्रय और तत्त्वार्थराजवार्तिक नामके ग्रन्थ प्रकाशमें आ चुके है | सिद्धिविनिश्चय प्रकाशमें नही आया । विद्यानन्दि ( ई० ९वी शती)
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विद्यानन्द अपने समयके वहुत ही समर्थ विद्वान् थे । इन्होने अकलंकदेवकी अष्टशतीपर 'अष्टसहस्री' नामका महान् ग्रन्थ लिखा है , जिसे समझने में अच्छे अच्छे विद्वानोको कष्ट सहस्रीका अनुभव होता है । य सभी दर्शनोके पारगामी विद्वान् थे । इन्होने अष्टसहस्री, आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, तत्त्वार्थश्लोक वार्तिक और युक्त्यनुशासन- टीका नामके ग्रन्थ रचे है। सभी बहुत प्रौढ दार्शनिक ग्रन्थ है । माणिक्यनन्दि ( ई० ९वी शती)
नामके
इन्होंने अकलकदेवके वचनोका अवगाहन करके परीक्षामुख सूत्र ग्रन्थकी रचना की है जिसमे प्रमाण और प्रमाणाभासका । सूत्रबद्ध विवेचन किया है। सूत्र सक्षिप्त स्पष्ट और सरस है ।
अनन्तवीर्य ( ई० की ९वी शती)
यह अकलंक न्यायके प्रकाण्ड पण्डित थे । इन्होने उनके सिद्धिविनिश्चय ग्रन्थपर बहुत ही विद्वत्तापूर्ण टीका लिखी है । वादिराजने अपने न्यायविनिश्चयविवरणमे इनकी बहुत प्रशंसा की है, और लिखा
१. इनकी जीवनी व परिचय जाननेके लिए न्यायकुमुदचन्द्रके प्रथम भागकी प्रस्तावना पढिये |