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________________ जनवर्म गृहस्थके लिए जिन पांच अणुव्रतोंका पालन करना आवश्यक बतलाया ई, यदि उन्हे सामाजिक और राजनीतिक जीवनका भी आधार वनाकर चला जाये तो विश्वकी अनेक मौलिक समस्याएं सरलतासे सुलझ सकती है। ___ अब रह जाता है नद्य, मांस और मधुका त्याग तथा गृहस्थके अन्य जत नियम । सबसे यह आगा नही की जा सकती कि सब उनका पालन करेंगे। फिर भी जो उनका पालन करेगा उसे शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टिसे लाभ ही होगा। मद्य और मांस ऐसी चीजें है जिन्हे मनुष्यके आम भोजनमें स्थान देना आवश्यक नहीं है। दोनो ही तामसिक है और तामसिक आहार विहारके होते हुए सात्त्विक भावोंका विकास नही हो सकता। और सात्विक भावोका विकास हुए विना अहिंसक वातावरण नही बन सकता। और अहिंसक वातावरण बनाये विना दुनियाको सुख गान्ति नसीव नही हो सकती । अत उनको ओरसे मनुष्योका मन यदि हट सके तो उससे उन मनुष्योका तथा संसारका लाभ ही होगा। मनुष्य स्वभाव नतो अच्छा होता औरनबुरा। वह तो कच्ची गीली मिट्टीके समान है। चाहे जिस रूपमे उसका निर्माण किया जा सकता है। जिन घरानोमें मद्य माससे परहेज किया जाता है उनमें जन्म लेनेवाले बच्चे उन चीजोसे परहेज करते है और जिन घरानोमे उनका चलन है उनमें जन्म लेनेवाले बच्चे उसके अभ्यस्त हो जाते है। इससे सिद्ध है कि इस प्रकारकी वस्तुओसे मनुष्योंको बचाया जा सकता है वह उनका प्राकृतिक आहार नहीं है। किन्तु जिन देशोमे अन्नको कमी या जलवायुके प्रभावके कारण 'मद्य और माससे एकदम परहेज करना शक्य नहीं है, उन देशोमे भी उनपर अमुक प्रकारके प्रतिवन्ध लगाकर कममे कम यह भाव तो पैदा किया जा सकता है कि ये चीजे मनुप्यके लिये प्राध नहीं है किन्तु परिस्थिनिया उन्हें बाना पाता है। अपनी शक्ति, परिस्थिति और ग्यपगायो अनुमार हिमाका त्याग करके भी मनुष्य अहिंमकोर्क - -- 0 0
SR No.010096
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1955
Total Pages343
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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