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चारित्र
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कोषमें उदुम्बरका एक नाम जन्तुफल भी है और एक नाम 'हेमदुग्धक' है, क्योकि उसमें से निकलनेवाले दूधका रंग पीलेपनको लिये हुए होत! है। पीपल, वट, पिलखन, गूलर और काक उदुम्बरी इन पाँच प्रकारके वृक्षोके फलोंको नहीं खाना चाहिये, क्योकि इनमें साक्षात् जन्तु पार, जाते है। पेड़से गिरते ही गूलरके फूट जानेपर उसमेसे उडते हुए जन्तुओ को हमने स्वय देखा है। अत ऐसे फलोको नहीं खाना चाहिये तथ, मद्य, मांस और मधुसे बचना चाहिये । प्रत्येक पाक्षिकको इतना ते कमसे कम करना ही चाहिये। लिखा है--
"पिप्पलोदुम्बरप्लक्षवटफल्गुफलान्यदन् । हन्त्याणि सान् शुष्काण्यपि स्व रागयोगत ॥ १३ ॥-सागारधर्मा० _ 'पीपल, गूलर, पिलखन, वट और काक उदुम्बरीके हरे फलोक, जो खाता है वह बस अर्थात् चलते फिरते हुए जन्तुओका घात करता है। क्योकि उन फलोके अन्दर ऐसे जन्तु पाये जाते है। और जो उन्हें सुखा, कर खाता है, वह उनमें अति आसक्ति होनेके कारण अपनी आत्माक घात करता है।' __ अत प्राथमिक श्रावकको इस तरहके फल नहीं खाना चाहिये तथा रातको भोजन नहीं करना चाहिये और सदा पानीको छानक, काममे लाना चाहिये । हिंसा, झूठ, चोरी, अन्नह्म और परिग्रह। छोडनेका यथाशक्ति अभ्यास करना चाहिये । तथा जुआ, वेश्य, शिकार, परस्त्री वगैरह व्यसनोसे भी वचते रहनेका ध्यान रखन चाहिये । प्रतिदिन जिन मन्दिरमें जाकर अर्हन्तदेवकी पूजा कर चाहिये, गुरुओकी सेवा करनी चाहिये, सुपात्रोको दान देना चाहिये तथा अन्य भी जो धार्मिक कृत्य है, तथा लोकमे ख्याति करानेव कार्य है, उन्हे करते रहना चाहिये । जैसे, दीन और अनाथोके भोजनशाला और औषधालयोंकी व्यवस्था करना चाहिये, अप पुत्र और पुत्रीको योग्य बनाकर सुपात्रके साथ उनका सम्बन्ध कर चाहिये । आदि,