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३. अचौर्याणवत जो मनुष्य चुरानके अभिप्रायसे दूसरेकी एक तृण मात्र वस्तुको। भी ले लेता है या उठाकर दूसरेको दे देता है वह चोर है, और जो इस तरहकी चोरीका त्याग कर देता है वह श्रावक अचौर्याणुअती कहा जाता है। किन्तु जो वस्तुएँ सर्वसाधारणके उपयोगके लिये हैं, जैसे, पानी मिट्टी वगैरह, उनको वह बिना किसीसे पूछे ले.सकता है, इसी तरह जिस कुटुम्बीके धनका उत्तराधिकार उसे प्राप्त है, यदि वह मर जाये तो उसका धन भी ले सकता है। किन्तु उसकी जीवित अवस्थामे उसका धन छीन लेना चोरी ही कहा जायेगा। यदि कभी अपनी ही वस्तुमे यह संदेह हो जाये कि ये मेरी है या नहीं? तो जवतक वह सन्देह दूर न हो तब तक उस वस्तुको नहीं अपनाना चाहिये। ___ तथा चोरीको बुरा समझकर छोड़ देनेवालोंको नीचे लिखे कार्य भी नही करना चाहिये
१-किसी चोरको स्वयं या दूसरेके द्वारा चोरी करनेकी प्रेरणा करना और कराना या उसकी प्रशंसा करना। तथा कैची वगैरह चोरीके औजारोंको बेचना या चोरोको अपनी ओरसे देना । जैसे, 'तुम देकार क्यो बैठे हो ? यदि तुम्हारे पास खानेको नहीं है तो में दता हूं। यदि तुम्हारे चुराये हुए मालका कोई खरीदार नही ह तो में उसे बैच दूंगा । इस प्रकारके वचनोसे चोरोको चोरीम लगाना भी एक तरहसे चोरी ही है।
२-चोरीका माल खरीदना । जो लोग ऐसा काम करते है वे समझते है कि हम तो व्यापार करते है, चोरी नहीं करते। किन्तु चोरीका माल खरीदनेवाला भी चोर ही समझा जाता है, तभी तो ऐसा देन-लेन छिपकर होता है।
३-बाट तराजू गज वगैरह कमती या वढती रखना। कमतीस तोलकर दूसरोको देना और बढतीसे तोलकर स्वय लेना।
४-किसी वस्तुमें कम कीमतकी समान वस्तु मिलाकर वेचना।